कलम
दिनांक – २८ फरवरी 2021
विषय कलम
विद्या कविता
कलम है बड़ी अजीब
तन्हाई जब रहे तो हो
जाती और करीब।
मौसम का जब बदलता रंग,
चढ़ जाता उस पर यौवन,
बसंत पंचमी की बेला में
उस पर चढ़ा पितांबर रंग,
मन में उठे कोई जज्बात,
पन्नों पर बिखर जाता अल्फाज,
इसका तो बस एक ही रंग,
गरीब बेबस बेजुबा की
जुबान बन जाती कलम,
जिंदगी के हर मोड़ पर
साथ देती कलम,
प्रेम को पिरोती कलम,
शिष्टता लाती कलम,
मृदुल कोमल बनाती कलम,
देश हित की हो बात तो
क्रांतिकारी हो जाती कलम,
सैनिकों में ओज लाती कलम,
कभी कविता कभी गजल
कभी क्रांति कभी कोमल
बनकर उतर जाती सबके हृदय तल,
कलम में होती इतनी ताकत
प्रेम बढ़ाती परस्पर,
पन्ने चिथड़े हो भी जाएं
असर दिखलाती कलम,
एक लेखक की जान कलम,
उसका अभिमान कलम
देती उसको पहचान कलम,
है ये अभेद्य,अमिट, असीमित।
स्वरचित
सविता सिंह मीरा
झारखंड जमशेदपुर