काश होता उस वक्त अवतरण उस इतिहास का करती विचरण जहाँ वृषभानुजा के संग रास रचाते थे किशन या फिर महलों को त्याग किया वन उपवन मंदिर में गमन गरल को कर दिया सुधा देखती वो भक्ति मीरा के मोहन माखन जब तक ना करते चोरी हलधर से चलती जोरा जोरी गगरी को फोड़ना नहीं […]
Author: सविता सिंह 'मीरा'
मेरी पहचान
कैसे बताऊं, मेरी पहचान थी अनजान, लेखनी मेरी सिमटी डायरी के पन्नों में, मन की बातें उकेर देती, फिर उसी पन्ने में कलम रख बंद कर देती थी डायरी, महामारी ने पकड़ा जोर ध्यान गया अपने हुनर की ओर, पन्नों के पिंजरे से निकल आ गई लेखनी प्लेटफार्म पर, फेसबुक इंस्टाग्राम व्हाट्सएप टि्वटर, मंच मिला […]
थोड़ी जरूरी दूरी है करीब आने के लिए
वो कहते हैं हमसे दे जाओ कोई निशानी बिन तेरे हमको है अब कुछ दिन बितानी आई थी जब तो बीती थी सोलह सावन संग तेरे ही तो बीती है सारी जवानी| अब भी कहते हो दे जाओ कोई निशानी? ये दरों दीवारें और ये आंगन ये चौखट उन पर स्पर्शों की सभी तरफ है […]
कुछ रिश्ते
मिल जाते हैं कुछ अनजान हो जाती फिर जान पहचान शायद रह गया कुछ अधूरा सा दे जाते वह अपने निशान| सभी रिश्तो से है यह परे उनको परिभाषित कैसे करें चाह नहीं कुछ भी पाने की ख्यालों में वो ही उभरे| दिनचर्या का वह अभिन्न अंग दो पल का ही मिलता है संग छोड़ […]
बाँझ
मानसी की शादी को 8 वर्ष हो गए थे, लेकिन अभी तक गोद नहीं भरा| परिवार वाले अब उसे उलाहना देने लगे| पहले तो उसका पति निखिल परिवार वालों का विरोध करता था, लेकिन धीरे-धीरे निखिल भी अपनी मां पिता की भांति मानसी को जली कटी सुनाने लगा| 1 दिन मानसी ने निखिल से कहा, […]
अब खुद में ही रम गयी
अब खुद में ही रम गयी बता तो दूं सारी बातें जता तो दूं सारी जज्बाते यशोधरा उर्मिला की भांति जागी हूं कितनी ही रातें ध्येय था सिद्धार्थ लक्ष्मण का मेरा भी भाव समर्पण का उनका तो लक्ष्य हुआ पूरा पर आया ना पल अपने मिलन का किसी और के होकर आए तुम मैं तुम […]
वारिधर
किसकी विरह में वारिधर फट पड़ा, क्यों चुपके से सारी रात वो रोता रहा, अवनी का प्रेम भी कुछ कम ना था, आगोश में उसके बादल भी लिपटा रहा| ना जाने वह कौन सा वियोग था, अवनी बादल का मिलन एक संयोग था, निशा भी नैनभर मूक देखती रही, या इस मिलन का खामोशी से […]
नदी
नहीं है ख्वाहिश कि दरिया से जा मिलूं अभी कुछ और लोगों की प्यास बुझे कुछ और बहुँ मैं अभी फेंक दे मानव अपनी उत्कंठा और वेदना इस बहाव में रुको मत बस बढ़े चलो क्या रखा है ठहराव में विसर्जित कर दो सारी गंदगी मुझे नहीं है मलाल फेको अपने द्वेष विकार और बनो […]
अपरिभाषित
पारदर्शी जैसे ओस की बूंद सी सिहरती सर्द में गुनगुनी धूप सी जज्ब हो जाती हो मुझ में इस तरह ग्रीष्म से तृषित धरा पे वर्षा की बूंद सीI कैसे हो तुम शब्दों में परिभाषित गुजरे तो जर्रा जर्रा होता सुवासित हंसे तो बिखरे जैसे सीप से मोती देखकर होता तन मन आह्लादितI अब तेरे […]
छोड़ गए
वो जो गए तो एक निशानी छोड़ गए, अव्यक्त कितनी सारी कहानी छोड़ गएI आएंगे वो हर वक्त अब मेरे ख्वाबों में, ऐसी कई यादें रूहानी छोड़ गएI कुछ कहना है उन्हें कहा था ऐसा, ना जाने वो बात क्यों बतानी छोड़ गएI लटों पर मेरे वो फिराते थे उंगली, उन उलझी लटों को सुलझानी […]