गज़ल
मँहगाई के इस दौर में भी ईमान बचा के लाया हूँ,
कातिल की बस्ती से अपनी जान बचा के लाया हूँ,
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यूँ तो बह गया काफी कुछ हालातों की बारिश में,
फिर भी तेरी खातिर मैं अरमान बचा के लाया हूँ,
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बचपन की शैतानी थोड़ी और माँ-बाबूजी का प्यार,
पुराने घर से इतना ही सामान बचा के लाया हूँ,
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इक दिन ये चिंगारी शोला बनकर आग लगाएगी,
हल्का सा सीने में मैं तूफान बचाकर लाया हूँ,
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कौम धर्म के नाम पे बाँटने वाले इन नेताओं से,
बामुश्किल मैं अंदर का इंसान बचा के लाया हूँ,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।