देह और देह
भोगा हुआ यथार्थ
सिर्फ कैनवास में
उकेरने की चीज है ।
कैनवास
व्यक्तिगत हो सकता है,
किन्तु कागज तो
सार्वजनिक वस्तु है,
रहेगी ।
आरक्षित गाड़ी
कागज का देह
कतई नहीं हो सकती !
परंतु वहीं काव्यकला
एक अवस्था है,
तो चित्रकला
अद्वितीय व्यवस्था ।
दोनों मर्मस्पर्शी,
किन्तु उतने ही
देहस्पर्शी भी ।
तभी तो
दंश का देह
समर्पित मानी गयी,
जो अब भी
मानी जाती रही है ।
फूलों की माँग
उनकी सुंदरता लिए है,
- तो सुगंध के लिए भी।