बारी
कई दिनों से वह अपने आप से जूझ रहा था. न जाने कितने डर उसने पाल रखे थे. जो बीत गया, उसे वह भुला नहीं पा रहा था. जो हुआ ही नहीं, उससे भी वह घबरा रहा था और इलाज के लिए डॉक्टरों के चक्कर काट रहा था. कोई लाभ न होना था, न हुआ.
अपनी परेशानी किसी से कह भी नहीं पाता था. समस्त सुविधाएं होते हुए भी न जाने किस सुविधा का अभाव उसे बुरी तरह खटक रहा था!
सच्ची दोस्ती के बारे में उसने सुन रखा था, कि दोस्त को कोई बात बताने की आवश्यकता ही नहीं है. वह खुद-ही-खुद आपके मन की बात को पढ़ लेता है. उसके साथ भी ऐसा ही हुआ था.
एक दोस्त ने सुप्रभात संदेश में लिखा था-
”एक बेहतरीन जिंदगी जीने के लिए,
यह स्वीकार करना जरूरी है,
कि जो कुछ आपके पास है.
वही सबसे अच्छा है.”
मनन करने पर उसने पाया कि उसके पास सब कुछ मौजूद है.
सोच बदलने से मन का शांत होना अवश्यम्भावी था. दिल है कि मानता ही नहीं, फिर डोल गया.
तभी एक और संदेश आ गया-
”तुम बस अपने आप से मत हारना,
फिर तुम्हें कोई नहीं हरा सकता.”
उसके बाद तो मन को शांत होना ही था.
दोस्ती सबसे बड़ा इलाज बन गई थी.
अब डॉक्टरों को उसे ढूंढने की बारी थी.
दोस्ती की करामात ऐसी ही होती है. सार्थक संदेशों से चमत्कार संभव है, जो होकर ही रहा.