ग़ज़ल
खूब पीता शराब है फिर भी।
उसका लीवर खराब है फिर भी।
मुफ़लिसी में पली बढ़ी है वो,
हुस्न पर लाजवाब है फिर भी।
अब रियासत नहीं रही बाक़ी,
बाइ नेचर नवाब है फिर भी।
गो ख़ुदा ने बहुत नवाज़ा है,
उसकी नीयत ख़राब है फिर भी।
लोग आते न बाज़ शेखी से,
ज़िन्दगी इक हुबाब है फिर भी।
उम्र सत्तर बरस की है लेकिन,
खूब चेहरे पे आब है . फिर भी।
— हमीद कानपुरी