गीतिका/ग़ज़ल

तेरा मुस्कराना

गिराता है बिजली,तेरा मुस्कराना,
शामत है दिल की,तेरा मुस्कराना।

क़यामत है आती,तेरा देखना यूँ,
ज़रूरत न छल की,तेरा मुस्कराना।

गुलाबों की खुशबूू,लगे रातरानी,
दिल की कसक की,तेरा मुस्कराना।

है यमुना की नहरें,है गंगा की कल-कल,
है निर्मलता जल की,तेरा मुस्कराना।

है सुलझी पहेली,किंचिंत जटिल ना,
ज़रूरत ना हल की,तेरा मुस्काराना।

है मंगल,मधुरता,मानस-चौपाई,
घड़ी है सुफल की,तेरा मुस्कराना

तूफान ला दे,ला दे जलजला जो,
ख़बर ना है कल की,तेरा मुस्कराना।

मीरा की भक्ति,कबिरा की वाणी,
यादें भजन की,तेरा मुस्कराना।

मुहब्बत की बातें करता है मानो,
दावत पहल की,तेरा मुस्कराना।

लूटे ‘शरद’ को बिना कट्टा,चाकू,
ज़रूरत क्या बल की,तेरा मुस्कराना।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]