दर्शन जिंदगी
स्त्री-पुरुष
दोनों ही क्रमश:
ब्रह्मचारिणी
और ब्रह्मचारी रहे हैं !
ज़िन्दगी कैसी जीनी है,
सबके अलग-अलग
दर्शन हैं,
हस्तक्षेप कैसा ?
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हर रंग में तू
खुशरंग दिखती है;
तुम्हारी साफ़गोई में
प्रेम छलकती है !
फिर मैं बहक रहा हूँ,
तो बहकने दो न !
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स्त्री-पुरुष की पूर्णता
‘अर्द्धनारीश्वर’ बनने में है !
वैज्ञानिक भाषा में
दोनों के बीच
आकर्षण (सहवास)
सिर्फ़ हार्मोनिक है ?
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तुम किसी की हो,
उनसे मेरा मतलब नहीं;
मेरा मतलब
सिर्फ तुमसे है,
तेरी इश्क से है !
होठों से छू लो तुम,
मेरा गीत अमर कर दो !
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इक कबूतरी संग
कर गुटरगूँ;
कि गौरेया बन
इश्क रचाऊँ !
जानम समझा करो !
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ख्वाहिशों को
अंज़ाम देने के लिए,
ज़द्दोज़हद क्या
मायने रखते हैं ?
जब इश्क किया,
तो डरना क्या ?
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मैंने प्यार करके
‘चेन’ (चैन)
खोला (खोया) !
हमारे यहाँ
पैंट की जिप को
‘चेन’ भी कहते हैं !
सॉरी ?
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जिस धर्म में
ऊंची जाति
और नीची जाति की
अवधारणा हो
तथा रोटी-बेटी का
सम्बंध न हो,
वो धर्म ‘धारण’ हेतु
या ‘गर्वता’ लिए
हो सकता है ?
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