बंगाल में घुसपैठ
आज के बंगाल को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 19 वी सदी के आरंभ का पाकिस्तान व बांग्लादेश के यही समीकरण होंगे। उस समय भी अंग्रेजी सत्ता ने मुस्लिमो के अव्यवहारिक घुसपैठ को महत्व न देकर, नजरअंदाज किया। इस समय बंगाल भी उसी दौर से गुजर रहा है, यहां की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते, बंगाल की वास्तविक पहचान व रहवासी जन बल बदल रहा है। बंगाल के ऐसे कई जिले है जी पिछले 2 दशक में लगातार 9,10 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या बढ़ोतरी में देश में शीर्ष पर है, इसके बचाव में कुछ राजनैतिक दल यह ढोल अवश्य पीटते है कि मुस्लिम परिवार नियोजन नही करते इसके कारण इनकी जनसंख्या बढ़ती है जबकि देश के अन्य राज्यों में तो ऐसा नही। यह जनसंख्या का अप्राकृतिक अनुपात में बढ़ना घुसपैठ की बढ़ती मानसिकता को दर्शा रहा है, बंगाल के स्थानीय भी इस समस्या से चिंतित अवश्य है, क्योंकि पिछले 2 दशक में जिस प्रकार शहर व ग्रामीण से हिन्दू का पलायन हुआ है, बंगाल उसी राह पर दिखाई दे रहा है जिस राह पर कई दशक पहले कश्मीर चला था। उस समय भी कश्मीर के स्थानीय नेतृत्व ने घुसपैठ पर प्रश्न उठाये परन्तु गुलामी से आश्रित जम्मू कश्मीर कोई मजबूत प्रतिक्रिया न दे सका।
बंगाल के ऐसे कई जिले है जिनमे मुस्लिम जनसंख्या विगत 2 दशकों में अन्य पक्षो की तुलना में दुगुनी रफ्तार से बड़ी है, क्या इस तरफ राज्य सरकारों का ध्यान नही जाता ? केवल एक भाजपा ही है जो इस विषय को उठाती है, वह भी इस पर कार्यवाही में आक्रामक नही, जबकि अन्य राजनीतिक दलों का तो जैसे मौन संधि हो, घुसपैठ के विषय पर कोई बयान भी नही देना चाहते। मुस्लिम तुष्टिकरण की इन्ही कुसंगतियो के कारण देश का विभाजन हुआ। आज बंगाल विभाजन की ओर जाता दिखाई दे रहा है।
जनसँख्या के आंकड़ों की तरफ देखें तो जानेंगे कि ऐसे प्रदेश के मुस्लिम बहुल होते जिले से हिन्दू के पलायन का मुख्य कारण इनके आक्रामक होने, लगातार संघर्ष होने, मंदिरों धार्मिक सार्वजनिक स्थलों पर जबरन कब्जा करने, मस्जिदों मदरसों से अकारण शोर मचाने के कारण मुख्य रहे।
2001-2011 के दशक में हिंदुओं के प्रतिशत में 0.7 प्रतिशत अंक की गिरावट दर्ज की गई है। यही कारण है कि देश में पहली बार हिंदुओं की जनसंख्या 80 प्रतिशत से कम हुई है। अब देश की कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत हिंदू है। भारत के 1971 के जनसंख्या मानचित्र की 2011 के जनसंख्या मानचित्र के साथ तुलना करने पर मुसलमानों की जनसंख्या का सच स्पष्ट हो जाता है। जहां 1971 के भारतीय जनसंख्या मानचित्र में जम्मू-कश्मीर के अलावा से देश में केवल दो मुस्लिम बहुल जिले थे, केरल में मल्लापुरम और पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद। वहीं 2011 के भारतीय जनसंख्या मानचित्र को देखने से पता चलता है कि भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में 10 से 15 ऐसे जिले हैं, जहां मुसलमान बहुमत में है, केरल में भी मुस्लिम जनसंख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। इस बहुमत का एक बड़ा कारण मुस्लिम महिलाओं की अधिक प्रजनन क्षमता से अधिक बांग्लादेश से हो रही मुसलमानों की अवैध घुसपैठ है। इस हिसाब से मुसलमानों की वृद्धिदर को बांग्लादेश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
बंगाल में स्थानीय नागरिकों व घुसपैठियों के बीच संघर्ष का भी यह सबसे बड़ा कारण रहा कि जनसंख्या के अनुपात में अप्रत्याशित व्रद्धि ने मुस्लिम समुदाय को आक्रामक स्थिति में खड़ा कर दिया । शुरू में तो आप्रवासी सामान्य तौर पर विनम्र हुआ करते थे इसलिए स्थानीय लोगों ने उन्हें अपना लिया था। लेकिन अब जो अप्रवासी आ रहे हैं, वो सामान्य तौर पर आक्रमक है और ऐसी कई शिकायतें भी हैं कि वो गांव वालों को डराते-धमकाते हैं, वे खाली पड़ी ज़मीनों और इमारतों को हड़प लेते हैं, यहां तक कि वे मंदिर की ज़मीन भी नहीं छोड़ रहे हैं, जिसके कारण कई गांवों में स्थानीय व घुसपैठियों में लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। वे वहां बड़ी-बड़ी मस्जिदें बनवाते हैं और लाउडस्पीकर लगाकर दिन में पांच बार अपने मजहब के लोगों को नमाज़ के लिए बुलाते हैं, यह स्थानीय लोगों और उनके बीच संघर्ष की एक बड़ी वजह है। कश्मीर में एक समय मस्जिदों की संख्या बहुत कम थी, फिर जनसँख्या में व्रद्धि के बाद बिना अनुमति के अंधाधुंध मस्जिद मदरसों का निर्माण करके मुस्लिमो ने कश्मीर में आप के आप को मजबूत किया। यही कारण था कि रोहिंग्या देश के अन्य राज्यो में जाने की जगह कश्मीर में जाकर रहने लगे।
एक बार बड़ी कार्यवाही करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने कुछ बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ कर वापस बांग्लादेश भेजने के लिए ट्रेन से बंगाल भेजा तो बंगाल में ही उन बंगलादेशी घुसपैठियों को
भारतीय नेताओं की लंबी सूची है जिनमें इन घुसपैठियों को वोटर कार्ड और दूसरे क़ानूनी दस्तावेज़ मुहैया कराने की होड़ लगी रहती है।
ये दस्तावेज़ उन्हें भारत में रहने में मदद करते हैं, राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें सम्मान देकर अपना चुनावी समर्थन मजबूत किया है, बीजेपी को छोड़कर किसी भी पार्टी ने इन मुस्लिम आप्रवासियों के लिए ‘खुले दरवाजे’ की नीति का विरोध नहीं किया है। इसे देश के लिए संकट समझने की दूरदृष्टि किसी राजनीतिक दल में नही ऐसा नही, परन्तु अन्य राजनीतिक दल वोटबैंक के लालच में घुसपैठ के विषय पर आंखें बंद रखना ही ठीक समझते है।
अब समय आ गया है जब घुसपैठ को राष्ट्रवादी मुद्दा बनाकर समस्त समाज को इस राष्ट्रवादी समस्या के लिए जागरूक करना होगा। विभिन्न सेमिनार, गोष्ठी, लेख, मंच आदि से घुसपैठ पर जन जन को जाग्रत करते हुए सरकार को विवश करना होगा कि वह घुसपैठियों के लिए कठोर हो।