ग़ज़ल
आए थे जग में दुकेले न आए।
गए जो धरा से अकेले सिधाए।।
माँ थी अकेली थे तुम भी अकेले,
तुम्हें जिंदगी के झमेले सुहाए।
जब तुम गए तो जमाना खड़ा था,
जिसने जो बोला अलबेले कहाए।
रोता है कोई बिलखता है कोई,
आँसू हिचकियाँ भी ले ले बहाए।
जी ले ऐ इंसाँ! जीवन को ऐसे,
यादों में जमाना मेले सजाए।
किसी का बुरा हो सोचो न पगले!
लाया न कुछ भी तू ले के न जाए।
सबका भला हो सब होवें निरोगी,
‘शुभम’ महकते पुष्प बेले खिलाए।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’