परम्परा को बदलकर
शिक्षकों को मजदूर जैसे
सोचने वाले लोगों,
अभिभावकों
और अधिकारियों को
वे डाँट लगाती हैं
कि शिक्षक को अगर
स्वाभिमानजीवी के रूप में
नहीं छोड़ेंगे,
तो वे कभी भी
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
प्रदान नहीं
कर सकते हैं,
क्योंकि शिक्षक
मजदूर नहीं,
अपितु देवता,
राष्ट्रनिर्माता,
मार्गदर्शक होते !
कई पुरुष-नमामि
पूजा-पाठ
और उपक्रम के विरुद्ध
अभियान चला रखी हैं ,
जैसे- सदियों से
मनाये जाने वाले
भैयादूज की
परम्परा को
बदलकर
बहनदूज
क्यों नहीं ही
किया जाय?