कविता

भूख

आत्मा की आवाज सुनाई देती है सबको
पर भूख की आवाज के सामने आत्मा और परमात्मा दोनों की ही आवाज दब जाती हैं
मर जाती है आत्मा
जब लगी हो भूख की आग
आदर्श तो आदर्श हैं
आग तो पानी ही से बुझा करती है
बातों की फुहारों से नहीं
सुनो सुनो आत्मा की आवाज
क्या बेहरे हो
जो सुनाई नहीं देती तुम्हें उसकी आवाज
जी मेरा पेट खाली है
सुनाई नहीं देती मुझे कोई आवाज
मुझे तो सुनाई दे रही बस
भूख की आवाज
मुझे उसी का हाहाकार सुनाई दे रहा है
जब पेट में लगी हो आग भूख की
दब जाती है तब आत्मा परमात्मा की आवाज
कोई आवाज नहीं सुनाई देती
बस एक ही आवाज सुनाई देती है
रोटी के लिए रोते बच्चो की पुकार
तब वहीं आत्मा होती है
वहीं परमात्मा होती है
*ब्रजेश*

 

 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020