बुढ़ापा
अजीब सा एक द्वंद चलता है भीतर
मेरे भीतर भी चल रहा है
उम्र के इस दौर में
असुरक्षित सा कुछ महसूस होता है
दोराहे पे आज खड़ा हूं
दिग्भ्रमित हो रहा
इधर जाऊं
या फिर उधर जाऊं
बड़ी मुश्किल में हूं
मैं किधर जाऊं
आज मन इसी स्थिति में है
अनिर्णायक