गज़ल
गज़ल में ढाल के महफ़िल में जब मैंने दर्द सुनाए थे
तेरी भी आंखें भर आईं थीं और होंठ थर्राए थे
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पूरी-पूरी खबर है सबकी इन खामोश सितारों को
सारी रात जाग के किसने कितने अश्क बहाए थे
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न जाने हक उन पर कैसे हो गया दूसरे लोगों का
मैंने अपना खून पिला कर जितने फूल खिलाए थे
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लौट रहे हैं आज उन्हीं की मय्यत लेकर कंधों पर
जिन अरमानों को लेकर हम तेरे शहर में आए थे
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बुरे वक्त में जब उनको आज़माया तो मालूम हुआ
जो ज़्यादा अपने बनते थे असल में वही पराए थे
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आभार सहित :- भरत मलहोत्रा।