गज़ल – मैं बनी हूँ राधिका
साधना करने लगी हूँ , बन गयी हूँ साधिका
कृष्ण तुमको मान बैठी मैं बनी हूँ राधिका,
भाव मन के शब्द बनके आ गये पन्नों पे यूँ
बज रही है बांसुरी बनने लगी हूँ वादिका,
तुम बसे हर रोम में हर साँस की धुन में मेरी
बिन सुरों,लय,साज के बनने लगी हूँ गायिका,
तज रही इच्छा सभी मैं बस तुम्हारी चाह है
जोड़कर ये नाम तुमसे मैं बनी हूँ तारिका,
साथ तेरा जो मिला ये मन तुम्हीं से बँध गया
इक़ नज़र तेरी पड़ी तो बन गयी मैं सारिका,
पल सभी इस ज़िंदगी के ख़ुशनुमा हों साथ में
तेरी है तेरी रहेगी हर जनम ये नायिका।।
— अनामिका लेखिका