गीत/नवगीत

जीवन स्वयं गढ़ेंगी हम

आसमान में उड़ने का कौशल है आजादी दो।
गिरि-शिखर झुकाने का साहस बल है आजादी दो।
मां पोषण-प्यार, दुलार हमें भी दो अब बेटों-सा,
सागर के सीने पर शौर्य लिखेंगी आजादी दो।।
बढ़े चरण न अब रोक सकेंगी नुकीली चट्टानें।
मंजिल पर कदम रुकेंगे संकल्प हृदय में ठाने।
तूफानों के शीश कुचलने का दमखम हममें है,
जीवन स्वयं गढ़ेंगी हम, पढ़ने की आजादी दो।
बीन राह के कंटक बाधाओं से हम खूब लड़े।
नभ, धरा, सागर पर कहां नहीं हमारे कदम पड़े।
श्वेत हिमालय की चादर पर पग-चिन्ह बनाये हैं,
फिर भी क्यों बंधन इतने, अब हमको आजादी दो।।

 — प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]