धूप छांह के रंग
रूप सुहानी चांदनी ,दिलकश थी आवाज ,
पर चिडिया को ले उडा ,चतुर सयाना बाज।
सुबह रसोई जागती ,करते बरतन शोर ,
अदरख वाली चाय से ,होती अपनी भोर।
ठिठुर रही है जिंदगी ,मौत भरे मुस्कान ,
घना कोहरा चीर के ,आओ धूप महान।
अंधियारे को चीर कर ,ऊगे सूरज रोज ,
चन्दा तारों की करे ,सारा दिन वो खोज।
बादल जी दिन भर फिरें,सूरज जी के संग .
धरती पे दिखला रहे ,धूप छांह के रंग।
— महेंद्र कुमार वर्मा