लघुकथा

एक बार फिर—–

आज माधवी के बेटे का नवीं कक्षा का परिणाम घोषित हुआ. वह सभी वर्गों की प्रावीण्य सूची में सभी विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम स्थान पर था. एक समय उसे डॉक्टरों द्वारा मंदबुद्धि की पदवी से विभूषित कर दिया गया था.

माधवी की खुशी का ठिकाना नहीं था और वह अपनी स्मृतियों के दरीचे में खो गई.
”मैं बचपन में शारीरिक रूप से बहुत कमजोर किंतु मानसिक रूप से काफी सशक्त थी और हमेशा कक्षा में प्रथम आती थी. दोनों हाथों की 10 उंगलियों में फुंसियों की वजह से पट्टियां बंधी रहने के कारण नवीं कक्षा की परीक्षा में मुझे लिखने में काफी दिक्कत हुई थी. मैं गणित की छात्रा थी. पेपर पूरा नहीं कर पाने की वजह से मुझे द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ. जब मेरे भाई को मेरा परीक्षा फल ज्ञात हुआ, उन्होंने मुझसे बोलना बंद कर दिया यहां तक कि मेरा चेहरा भी नहीं देखते थे. मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया किंतु वह तो देखने-सुनने को ही तैयार नहीं थे. बस मुझे देखते ही कहते थे आजकल लोगों को बहुत घमंड हो गया है सर्वप्रथम आने का.” भाई का आक्रोशमय चेहरा उसके समक्ष नमूदार हो गया था.

”मुझ पर इस तरह व्यंग्य करते थे जबकि उनको मेरी तकलीफ का पता था. दुख तो मुझे बहुत हुआ किंतु मैं चुपचाप अपनी पढ़ाई पर पूर्ण ध्यान देती रही. वार्षिक परीक्षा आई और मैंने अपना संपूर्ण देने का प्रयास किया. मैंने ठान लिया था चाहे मेरी उंगलियों से खून भी निकले पर मेरा पेपर नहीं छूटना चाहिए. परीक्षा-परिणाम निकला और मैं सभी वर्गों की प्रावीण्य सूची में सभी विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम स्थान पर थी.” वह बहुत खुश थी, मानो आज ही उसका परीक्षा-परिणाम आया हो.

”जब यह समाचार मेरे भाई को मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने मुझे गले लगा लिया. मेरे भाई की व्यंग्योक्ति ने मेरी प्रेरणा बनकर मुझे पिछड़ने की खोल से बाहर निकाल लिया था.”

यही युक्ति मैंने अपने बेटे को मंदबुद्धि से उबारने के लिए प्रयुक्त की थी.
एक बार फिर व्यंग्योक्ति की जीत हुई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “एक बार फिर—–

  • मनमोहन कुमार आर्य

    सादर नमस्ते जी। कहानी प्रेरणादायक है। धन्यवाद।

  • लीला तिवानी

    मंदबुद्धि और पढ़ाई में कमजोर अनेक बड़ी हस्तियों ने व्यंग्योक्ति को संबल बनाकर किसी और क्षेत्र में नाम कमाया है. धीरूभाई अंबानी, अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन. अभिषेक बच्चन और सचिन तेंदुलकर की कहानियों से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाया जा सकता है. अमिताम बच्चन की आवाज को पहले-पहल रेडियो के अयोग्य करार दिया गया था. आज वे बहुआयामी अभिनय के साथ-साथ आवाज के भी शनशाह हैं.

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