पर्यावरण

ताकि गौरैया और अन्य पक्षी इस धरती पर बचे रहें

साँसों के स्पंदन से युक्त इस पृथ्वी, इसका जैवमण्डल और इस भूमंडल पर जन्म लेने वाली एक नन्हीं चींटी से लेकर इस जैवमण्डल की सबसे बड़ी स्तनपाई जीव ह्वेल तक को इस धरती पर जीने का उतना ही अधिकार और ह़क है, जितना हम, स्वयं मनुष्य प्रजाति को। मनुष्य प्रजाति को यह कतई अधिकार नहीं है कि वह अपने लाभ-हानि और उपयोगिता-अनुपयोगिता के हिसाब से यह निर्धारित करे कि इस धरती पर कौन जीव रहे और कौन न रहे ? पुरातात्विक वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के अनुसार अब यह पूर्णतया सिद्ध हो चुका है कि ‘अगर हम मान लें कि इस धरती पर जीवों को आए हुए कुल 24 घंटे हुए हैं, तो मानवप्रजाति को इस धरती पर आए हुए मात्र एक सेकेंड ही तो हुआ है ! लेकिन वैज्ञानिक शोधों से यह भी साबित हो चुका है कि मनुष्यप्रजाति अपने धरती पर आने के इतने अल्प समय में ही इस धरती, इसके जैवमण्डल, इसके समुद्रों, जंगलों, पहाड़ों, नदियों, जलाशयों, यहाँ तक कि पथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष तक को भी इतना प्रदूषित व इतना नुकसान पहुंचा चुका है, जितना अरबों सालों से पैदा इस पृथ्वी के अन्य सभी जीव, यहाँ तक कि इस धरती पर साढ़े छः करोड़ साल पूर्व जुरासिक काल में पैदा हुए इस पृथ्वी के सबसे बड़े रेंगनेवाले रेप्टाइल्स प्रजाति के भीमकाय डायनोसॉर भी इसे उतना नुकसान नहीं पहुँचाए थे ! यह भी कटुसत्य है कि मानव जैसे-जैसे अपना कथित विकास कर रहा है, उसी के अनुपात में इस धरती, इसकी लाखों-करोड़ों सालों से प्रकृति के अकथ्य परिश्रम से बनाई गई इसकी वन्य व जैवमण्डल श्रृंखला, पर्यावरण और इस पर उपस्थित अन्य सभी वन्य जीवों का सर्वनाश व विलोपन भी उसी तेज गति से कर रहा है। इसी क्रम में जीववैज्ञानिकों के अनुसार हमारे घर-आँगन की प्यारी, नन्हीं-मुन्नी, पारिवारिक सदस्या गौरैया भी भारत सहित पूरी दुनिया भर में 80 से 90 प्रतिशत तक विलुप्त हो चुकी है। ‘
तो आइये आज हम सभी भारतवासी ये संकल्प लें कि हम मारिशस के डोडो पक्षी और भारतीय जंगलों में पिछली सदी तक लाखों की संख्या में स्वच्छंद रूप से विचरण करने वाले बड़ी बिल्ली प्रजाति में सबसे खूबसूरत, मानवमित्र और इस धरती के सबसे तीव्र धावक चीते जैसे इस नन्हीं-मुन्नी अपनी पारिवारिक सदस्या गौरैया रानी को विलुप्त नहीं होने देंगे । इसके लिए हम आज ही यह प्रतिज्ञा करें कि आज से ही हम प्रतिदिन सुबह में ही अपने घर के खुले स्थानों यथा बारामदा या छत आदि पर एक कटोरी साफ पानी अवश्य रखेंगे, किसी ऊँचाई वाले स्थान यथा बारामदे के खंभों या छज्जे के नीचे एक घोसला बनाकर जरूर टागेंगे, अपने घर में बने बचे हुए चावल, रोटी या किसी भी भोज्यपदार्थ को फेंकने के बजाय उसे खुली छत या आसपास के पार्कों में एक किनारे डाल दिया करेंगे, अपने घर के आसपास एक-दो पेड़ लगाकर उसे पाल-पोसकर बड़ा जरूर करेंगे। हम भारत सरकार से यह भी विनीत निवेदन भी करते हैं कि जैसे विलुप्त होते बाघों के वंश को बचाने के लिए देश भर में जगह-जगह बाघ अभयारण्य बनाए गए हैं, उसी की तर्ज पर विलुप्ति के कग़ार पर खड़ी गौरैयों को बचाने के लिए भी देश भर में जगह-जगह छोटे-छोटे ‘गौरैया अभयारण्य ‘बनाए जाएं। इसके लिए शहरों, महानगरों से दूर किसी ऐसे मानव बस्ती का चुनाव करना होगा, जहाँ मोबाईल टॉवरों का जाल न हो, वहाँ खूब पेड़-पौधे और झाड़ियाँ हों, जहाँ साल भर अविरल रूप से बहनेवाला एक प्रदूषणमुक्त प्राकृतिक जलश्रोत हो। इसके अलावे इस देश की सभी नदियों में शहरों के प्रदूषित सीवर का पानी सीधे न डालकर उसे प्रतिशोधन के बाद ही डाला जाय, ताकि वे नदियां अपने उद्गम श्रोत से स्वच्छ और निर्मल जल के रूप में हजारों किलोमीटर दूर देश के विभिन्न गाँवों, कस्बों, नगरों, महानगरों से होते हुए समुद्र तक अपनी अविरल यात्रा कर सकें, किसान अपने खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों की जगह गाय के गोबर को खूब सड़ाकर बनाए गये कम्पोस्ट खाद और जैविक कीटनाशकों का अधिकाधिक प्रयोग करें, हर प्रकार के सरकारी और गैरसरकारी छोटे-बड़े भवनों के निर्माण के दौरान ही गौरैयों के घोसले बनाने लायक स्थान अनिवार्य रूप से छोड़ने का विशिष्ट कानूनी प्रावधान बने, हमें पेट्रोल व डीजल चालित छोटे वाहनों जैसे स्कूटरों, कारों, टैक्सियों आदि की जगह सौरचालित या बैट्रीचालित सार्वजनिक वाहनों के प्रयोग करने को प्राथमिकता देनी ही होगी। गौरैयों का जहाँ बसेरा हो वहाँ से उतनी दूरी पर मोबाईल टॉवरों को लगाने का प्रावधान व सख्त कानून बनना चाहिए, ताकि मोबाईल टॉवरों से निकलनेवाली तीव्र रेडिएशन किरणों से गौरैयों के अंडों, उनके बच्चों और स्वयं उनके स्वास्थ्य पर भी कोई गंभीर खतरा पैदा न हो, क्योंकि जीव वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण, कंक्रीट के घरों की बनावट, कीटनाशकों के प्रयोग के अतिरिक्त गौरैयों के विलुप्तिकरण में मोबाईल टॉवरों से निकलने वाली घातक रेडिएशन किरणें भी एक प्रमुख कारण हैं।
उक्तवर्णित सावधानियों को अपनाने से हम मनुष्यप्रजाति के साथ-साथ गौरैयों व अन्य पक्षियों तथा मधुमक्खियों सहित इस धरती के हजारों अन्य कीटपतंगों और परिदों को भी संरक्षित रखते हुए हम स्वयं होमोसेपियंस मतलब मानव प्रजाति भी इस धरती पर खुशहाली के साथ और स्वस्थ्य रहकर जी सकेंगे। इस धरती पर इस जीवरूपी माला के रहने से इसका पर्यावरण संतुलित व स्वस्थ्य रहेगा, माला के किसी भी एक जीवरूपी मनके के इस धरती से विलुप्त होने से, गायब होने से पूरे जैवमण्डल की पारिस्थितिकी तंत्र रूपी माला के बिखरने का पूरा खतरा है। प्रकृति को इस पूरे जैवमण्डल की पारिस्थितिकीय तंत्र रूपी माला के हरेक जीव रूपी मनकों को माला बनाने में करोड़ों-अरबों साल की अकथ्य मेहनत और जतन करनी पड़ी है। इस पृथ्वी के सबसे समझदार और बड़े मस्तिष्क वाले प्राणी मानवप्रजाति को इस माला को बिखरने से हर हाल में बचाना ही होगा। मानव द्वारा किए जाने वाले इस सुकृत्य से इस पृथ्वी के लाखों-करोड़ों अन्य जीवों के साथ मानवमात्र की भी भलाई अन्तर्निहित है।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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