कविता

बदनाम कर लो

पास आकर तुम भी तो
मेरे दर्द का अहसास कर लो,
कम से कम एक बार ही
प्यार को स्वीकार कर लो।
भीड़ में दुनिया के डर से
छुप गये हो तुम कहाँ?
भीड़ से बाहर निकलकर
थोड़ा मुझको प्यार कर लो।
बस.! तुम्हारे ही लिए
बदनामियां मैं सह रही,
कर सको न प्यार तो
तुम भी तो बदनाम कर लो।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921