भारत का नाम केवल भारत हो, गुलामी का प्रतीक इंडिया शब्द हटाएँ
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत याचिका क्रमांक WPWIVIL/203/2015 में यह निराकरण चाहा गया था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३२ के अंतर्गत संविधान में संशोधन कर ‘इण्डिया’ शब्द को हटाकर सिर्फ ‘भारत’ रखा जाए। याचिका की सुनवाई तीन सदस्यीय खण्डपीठ जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े,न्यायमूर्ति ए. एस.बोपन्ना और न्याय मूर्ति ऋषिकेश राय की खण्डपीठ के समक्ष हुई।
०३-जून २०२० के अपने आदेश में न्यायालय ने प्रार्थी के अधिवक्ता की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए याचिका को प्रतिवेदन मानकर भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों की ओर उचित कार्यवाही हेतु अग्रेषित करने हेतु प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। तदनुसार आपकी सेवा में संविधान संशोधन करने हेतु निम्नलिखित निवेदन प्रस्तुत है :-
विशेष: भारत राष्ट्र रूपी वृक्ष की बिगड़ी हुई सूरत को संवारने के लिए आवश्यकता पुरुषार्थ रूपी दीपक को पुन: प्रज्वलित करके उसे मूल रूप से उद्घाटित करने की है। भारत तो ‘भारत’ रूप में में अनादिकाल से विद्यमान है। आप स्वयं इस सर्वज्ञात प्रमाण जिनमें ‘ भारत’ ‘भरत’ शब्द है, से अवगत हैं- जैसे ‘भरत नाट्यम, सुब्रह्मण्यम ‘भारती’, भारतेंदु हरिश्चंद्र, ‘भारतमाता’, ‘भारत भाग्य विधाता’, ‘मेरा भारत महान’।
आप महानुभाव और मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफ़ेयर्स
२. लेजिस्लेटिव डिपार्टमेंट (मिनिस्ट्री ऑफ़ लॉ एण्ड जस्टिस),
३. मिनिस्ट्री ऑफ़ पार्लियामेंटरी अफ़ेयर्स
४.डिपार्टमेंट ऑफ़ लीगल अफ़ेयर्स की ओर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के प्रकाश में संविधान में संशोधन करने हेतु प्रस्तुत निवेदन अगर उचित लगे तो कृपया अग्रेषित कर दें।
आप महानुभाव की सेवा में -“इण्डिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ होगा” के स्थान पर सिर्फ “भारत राज्यों का संघ होगा”। संविधान में संशोधन के लिए अतीत की पृष्ठभूमि संस्कृति, इतिहास और देश की गौरवशाली परंपरा के आधार पर निम्नानुसार प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूँ।
१. भारतवर्ष में तीन ‘भरत’ हुए हैं। पहले ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ जिनके नाम पर देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा।
दूसरे राजा दशरथ के पुत्र ‘ भरत’, और तीसरे -शकुंतला का पुत्र ‘भरत’ दशरथ के पुत्र ‘भरत’ ने श्री राम के नाम पर शासन किया था, इसलिए उनके नाम से देश का नाम ‘भारतवर्ष’ होना अस्वाभाविक है।
२. भारतीय संस्कृति के आद्यप्रणेता जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ निर्वाण कैलाश पर्वत पर हुआ था। प्रगेतिहासिक काल के ग्रंथ ‘आदिपुराण’ (आचार्य जिनसेन कृत) के अनुसार ऋषभदेव ने हिमवान पर्वत से लेकर समुद्र पर्यंत षटखण्डों पर विजय पाकर चक्रवर्ती पद धारण किया। तब से देश का नामकरण ‘भारतवर्ष’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। । जो प्रागैतिहासिक काल में भारत के प्रथम सम्राट के पद पर सुशोभित हुए थे।आप मनु के वंशज थे। जिनका वृतांत श्रीमद् भागवत महापुराण में है। देखिए-(३०) (३१) (३२) (३३) (३४) (३५) एक व्युत्पत्ति के अनुसार भारत ( भा+रत) शब्द का मतलब है आंतरिक प्रकाश या विदेक-रुपी प्रकाश में लीन।
३. भारत सिर्फ एक भू-भाग का ही नाम नहीं है। अपितु भारतवर्ष को वैदिक काल से ‘आर्यावर्त’ ‘जम्बूद्वीप’ और ‘अजनाभदेश’ के नाम से भी पहचाना गया है।
४. हिंदू पुराणों में भी ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ के नाम से देश का नामकरण ‘भारत’ स्वीकार किया गया है देखिए अग्निपुराण अध्याय-१० श्लोक १०, १२ में :-
जरामृत्युभयं नास्तिक धर्माधर्मों युगादिकम्। नाधर्म मद्यं तल्या हिमाद्देशात्तु नामित:
श्रीमद् भागवत् के खण्ड ५।६।३ के अनुसार येपांखलु बरतों ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण आसीद्देनेदं वर्ष भारतमिति मत आर्य व्यपदिशंति।
५. भारत का एक मुंहबोला नाम ‘सोने की चिड़िया’ भी प्रचलित था, देखिए ३९)
७. भारतवर्ष का नाम ऋग्वेद काल के चक्रवर्ती सम्राट भरत पर पड़ने की प्रामणिकता: २००० वर्ष से भी अधिक पुरातन महाराज खारवेल के हाथी गुम्फाक शिलालेख (उड़ीसा) में जो भारतीय इतिहास के धरोहर के रूप में संरक्षित है, इसमें भी ऋषभदेव, उनके पुत्र ‘भरत’ और ‘भारतवर्ष’ के नाम का वर्णन उल्लेखित है।
८. ‘भारत’ नाम के संबंध में ऋग्वेद में वर्णन मिलता है कि ‘भारत’ एक सम्प्रदाय अथवा जाति का नाम है। जो अपने गर्त में कई पीढ़ियों/ वंशजों को समाए हुए हैं। वेदों में मिले उल्लेख के ९. ईसा पूर्व ११५० में दशराज युद्ध आर्य और ‘ भारत’ जातियों के बीच हुआ था। जिसमें ‘भारतों’ का नेतृत्व ऋषि विश्वामित्र द्वारा किया गया था। ऋ्ग्वेद में यह वर्णन मिलता है कि महाभारत भारतीय परम्परा और संस्कृति का महाग्रंथ है।
१०. महाभारत शब्द के कथन का उल्लेख करते हुए महर्षि वेदव्यास जो कि महाभारत ग्रंथ के रचयिता माने जाते हैं, कहते हैं कि महाभारत में भारतवंशी क्षत्रियों का वर्णन किया गया है। इसके आगे १३ जातियों की वंश परंपरा का वर्णन करते हुए वेदव्यास लिखते हैं कि राजा मनु के दो पुत्र देवभ्राट और सुभ्राट थे।इनमें से सुभ्राट के तीन पुत्र थे – दशज्योति, शातज्योति और सहस्त्रज्योति। ये तीनों ही महाप्रतापी और विद्वान थे।
११. पुरूवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र ‘भरत’ की गणना ‘महाभारत’ में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’ है। एक वृतांत के अनुसार दुष्यंत ने पुरुवंश की परंपरा को आगे बढ़ाया था
१२. वेदव्यास ऋग्वेद काल का भौगोलिक वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उस समय प्रदेश कई वैदिक समूहों अथवा जातियों में विभाजित था। जिनमें गांधारी, अनुद्रुहा, पुरु, तुरुवश और ‘भारत’ आदि जिनमें ‘भरत’ और पुरु दोनों ही महत्वपूर्ण जातियाँ थीं।
१३. हिंदू धर्म का प्रसिद्ध पुराण भागवत के अनुसार- सृष्टि के शुरुआत में मनु नामक राजा का राज्य था। उनके पौत्र का नाम नाभिराय था। जिनके नाम पर ही भारतवर्ष की पहचान अजनाभवर्ष के नाम से हुई इन्हीं अजनाभवर्ष के पुत्र ऋषभदेव थे। जो स्वयंभू मनु की पाँचवीं पीढ़ी का क्रम है : स्वयंभू मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ और फिर ‘भरत’ हुए। ऐसी मार्कण्डेय पुराण में वंशावली है। जिन्हें वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरूप माना गया है, तथा जैन धर्म में उनको आदि तीर्थंकर के रूप में माना जाता है। इन्हीं ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र ‘भरत’ हुए।
१४. मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि मनु को जन्म देने और उसका भरण-पोषण करने के कारण ‘भरत’ नामकरण हुआ। जिस खण्ड पर उसका शासन वास था उसे भारतवर्ष कहा गया। नामकरण सूत्र जैन परंपरा में मिलते हैं।
१५. हड़प्पा और मोहन-जोदड़ो से प्राप्त प्राचीन मूर्तियॉं पुरातत्व विभाग के अनुसार ऋषभदेव की है।
१६. मरुद्रणों की कृपा से ही ‘भरत’ को भारद्वाज नामक पुत्र हुआ। जो महान ऋषि हुए। चक्रवर्ती राजा ‘भरत’ का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है। भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।
१७. पुस्तक : भारतवर्ष नामकरण: इतिहास और संस्कृति-लेखक, प्राध्यापक जिनेन्द्रकुमार भोमाज के अनुसार भारत शब्द की उत्पत्ति भारत के प्राकृत प्रयोग से हुई। नाभि के पुत्र ऋषभ, उनके अलौकिक पुत्र चक्रवर्ती सम्राट ‘भरत’ हुए। जो १४ रत्न, ३२,००० राजा और लाखों चतुरंग सेनाओं के स्वामी थे। जिसका उल्लेख भागवत, हरिवंश और आदिपर्व, विष्णु और ब्रह्मपुराण आदि में मिलता है।
१८. आचार्य बलदेव उपाध्याय, सूरदास काव्य, डॉ. जायसवाल, डॉ. अवधरीलाल अवस्थी, डॉ. पी. सी. राय चौधरी, डॉ. मंगलदेव शास्त्री, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, डॉ. प्रेमसागर जैन, प्रो. आर. डी. कर्मरकर आदि ने ऋषभ के पुत्र ‘भरत’ के कारण देश को ‘भारतवर्ष’ के रूप में स्वीकार किया है।
१८. भारत का एक अन्य नाम ‘हिन्दुस्तान भी है। जिसका अर्थ ‘हिन्द की भूमि’ यह नाम विशेषकर अरब/ईरान में प्रचलित हुआ। (३६) (३७) ईरान से आए आक्रमणकारी ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ से किया करते थे, इस प्रकार उन्होंने ‘सिंधु को हिंदु’ कहा जो भविष्य में ‘हिंदुस्तान’ कहलाया। देश में मुग़लों ने शासन किया। उसके बाद अंग्रेजों के शासन आया। पहले ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के नाम से व्यापार करने हमारे भारत में ये अंग्रेज़ आए थे बाद में इन्होंने ‘भारत’ पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली। इन्होंने ‘इण्डिया’ शब्द को अपने अंग्रेजी शासन के साथ ही भारत में प्रचलित कर दिया।
स्वाधीन होने के बाद देश के संविधान में असावधानी से ‘भारत’ शब्द से पहले ‘इण्डिया’ शब्द को स्थान दे दिया गया। जो सर्वथा ग़लत था। जबकि संविधान में ‘सिर्फ ‘भारत, भारतीय और भारतीयता’ के अतिरिक्त किसी अन्य देश, भाषा और उसकी जाति के शब्द को स्थान देना राष्ट्र और राष्ट्रीयता के अतिरिक्त प्राचीन गौरव, इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के अनुसार भी असंगत है।
जैनाचार्य अपराजेय साधक संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महायतिराज पिछले कुछ वर्षों से आव्हान कर रहे हैं कि ‘इण्डिया‘ शब्द पराधीनता का द्योतक है। जिसने भारत को मानसिक रूप से परतंत्र बना रखा है जो विदेशी मानसिकता पर आश्रित है। जबकि ‘भारत’ शब्द भारतीय जीवन पद्धति का स्पंदन’ है। भारत का अर्थ-‘भा’ अर्थात् (प्रकाश या ज्ञान) है। जो निरंतर ज्ञान की खोज में लगा है। असली सवाल‘भारत’ के भारत होने का है। अपने इतिहास का शब्द ‘भारत’ को भूलने का अर्थ अपने दादा-परदादाओं से संबंध ख़त्म कर लेना है। आपने ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के पृष्ठ ७८९ प्रकाशित जानकारी देते हुए बताया कि-‘ Indian जिसका मतलब ओल्ड फ़ैशन एण्ड क्रिमिनल पिंपल’ अर्थात् पिछड़े और घिसे-पिटे विचारों वाले अपराधी लोग।जब अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, भूटान और पाकिस्तान जैसे सभी देशों की भाषा में एक ही नाम बोला और लिखा जाता है तो ‘भारत’ के नाम को संविधान में ‘इण्डिया’ के साथ रखा जाना अपमानजनक और असहनीय है। छोटा-सा देश ‘सिलोन’ जब अपना नाम बदलकर ‘श्रीलंका’ कर सकता है, तो संविधान में संशोधन करके सिर्फ़ ’भारत’ रखा जाना संगत है।
— निर्मलकुमार पाटोदी