गीत
चंद सपने मर गये तो क्या हुआ ,हम नये सपने सजाने चल दिये ।
हर तरफ पतझार है तो क्या हुआ,हम बसंती गीत गाने चल दिये ।
लक्ष्य पथ चलते रहो , हारो नही ।
भीरु होकर ,चाह को मारो नही।
अब तुम्हें केशव जगायेंगे नही ,
पार्थ ! तुम तूणीर धनु डारो नही।
शकुनियों की भीड़ को तुम रोक लो!वो नया चौपड़ सजाने चल दिये।
चंद सपने मर गये………………………
हर जगह आसीन घन-आनंद है।
अहं है सत्ता का ,सो मतिमंद है ।
क्या करें विद्वान ऐसे राज्य में ,
राह प्रतिभा की सकल दिशि बंद है।
घूँट पी अपमान का,कुछ प्रण किया,चंद्रगुप्तों को बनाने चल दिये ।
चंद सपने मर गये तो…………………………
हवाओं की कोशिशें पुरजोर थी ।
दीप की साँसे बहुत कमजोर थीं।
काँपती लौ ने न माना हार को ,
लड़ाई तम से बड़ी घनघोर थी ।
तुम दिवाकर को बुझा सकते नही,तिमिर को हम ये बताने चल दिये।
चंद सपने मर गये तो क्या हुआ ……………………..
————————-© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी