कहानी

बिटिया की शादी का अल्बम

बिटिया की शादी का अल्बम

सुनंदा को आज विदा हुए पाँच साल बीत चुके हैं। शुरू में तो तीन चार माह में मिलने आ जाया करती थी, पर पिछले दो सालों में वह एक ही बार आ पायी थी। लगभग डेढ़ साल पहले जनवरी में सागर जब हृदयाघात के पश्चात अस्पताल में भर्ती हुए थे, वह परिमल के साथ आयी थी। दौड़ कर सागर से लिपट कर रोने लगी थी – “बाबू जी को क्या हो गया है ? ” फिर करीब पाँच दिनों तक सागर की सेवा करती रही। सागर उसका हाँथ अपने सीने पर रखकर रोने लगते थे। लगता था, सागर को मन की मुराद मिल गयी थी। दोनों बेटे राकेश और आलोक बाहर विदेश में नौकरी करते थे, बड़ा बेटा राकेश न्यूयार्क के जर्सी शहर में था और छोटा बेटा आलोक लंदन के वेम्बले में । दोनों में से कोई नहीं आ पाया था। फिर जब बड़ा बेटा और बहू आ गए, तब वह “फिर आऊंगी” कहकर वापस लखनऊ चली गयी थी। कुछ दिनों में सागर स्वस्थ होकर जब घर लौटे, तब एक माह से सूना घर अचानक पराया लगने लगा था। आलोक देर से पंहुचा था, पर पंद्रह दिन साथ था। घर आने वक्त सिर्फ आलोक और छोटी बहू साथ थे। उन दोनों ने पूरे घर को साफ सुथरा किया और करीब पाँच दिन और साथ रहकर चले गए। बच्चों के जाने के बाद फिर घर में खालीपन आ गया था। घर काटने को दौड़ता था। सागर भी सब समझते थे, पर कहते नहीं थे। एक दिन वह कमोड पर बैठे बैठे गिर पड़े थे। धप्प से गिरने की आवाज सुनकर चौंक पड़ी थी।
सागर जोर से पुकारे – सोनी…..!….!
मैं दौड़ पड़ी, उन्हें उठाया और किसी तरह मैंने संभाल कर खड़ा किया। उनके पोतड़े पोछे, हांथ धुलाया और धीरे धीरे चलाकर पलंग तक ले आई। धीरे से बैठाया, कहा – आराम कर लो। हदस चली जाएगी।
सागर – बहुत कमजोरी है, सोनी। धीरे धीरे जाएगी।
सोनी – तुम तो अब कमजोर हो गए हो, पुरानी ताकत तो आएगी नहीं। डाक्टर आराम करने बोला है। मैं भी बूढ़ी हो चुकी हूं। शरीर में वो ताकत नहीं रही कि दौड़ दौड़ कर काम कर सकूं। खाना बना लेती हूं, यही क्या कम है। दूधवाला खेलावन बहुत मदद कर देता है, तब घर के सारे काम निबटते हैं।
उसी समय खेलावन चिल्लाकर पूकारा – माई दूध ले लो।
सोनी बाहर निकली, तो खेलावन बोल पड़ा – आज बाबूजी नहीं दिख रहे।
सोनी – चल घर के अंदर। बाबूजी के पास बैठ, चाय बना कर पिलाती हूं।
खेलावन को पूरा घर देखा हुआ था, बड़ा बेटा राकेश की उम्र का था। दस सालों से घर में दूध दे रहा था। सुनंदा की शादी के बाद धीरे धीरे हम सभी उस पर निर्भर हो गए थे। राशन लाना हो, गैस लाना हो अथवा सब्जी लाना हो, सदैव वह सागर के साथ रिक्शा में बैठ कर चला जाता था। राशन वगैरह लाने के बाद सागर के साथ बैठकर घंटों बात करता था। कभी जब उसे रूपयों की जरूरत होती, तो सागर से मांग लिया करता था। आज तक कभी उसे दूध का पैसे लेते नहीं देखा। सागर सदैव उसे अग्रिम तौर पर रूपये दे दिया करते थे। खेलावन का बड़ा परिवार हुआ करता था। वह कहता था – माई जिसके पास धन होता है, सुख नहीं होता। जिसके पास सुख होता है, धन नहीं होता।
मैं भी हंस पड़ती थी।
खेलावन दौड़कर सागर के पास पंहुचा, देखा सागर की आँखें भींगी है। सागर के मना करने के बावजूद वह सुनंदा को फोन लगा बैठा – दीदी, आ जाओ। बाबूजी गिर पड़े हैं। माई कितना संभालेगी।
सुनंदा घबड़ा कर दूसरे दिन आने का वादा कर दी। सागर को पता था, वह नहीं आ पाएगी। एक छोटा सा आठ माह का बच्चा है। परिमल का जेनरल स्टोर्स की दुकान है। उसके घर में सास ससुर भी हैं। अपने घर को संभालने में और बच्चे के लालन पालन में वह वक्त नहीं निकाल पाती है, तो यहाँ आने पर लखनऊ में कितना कष्ट होगा। फोन पर ही बातें हो जाया करती हैं।
सोनी चाय लेकर पंहुची और खेलावन एवं सागर के हांथों में कप पकड़ाकर स्वयं भी वहीं बैठकर चाय पीने लगी। खेलावन ने सुनंदा बिटिया को फोन कर दिया, जानकर उसपर सोनी गुस्सा हो गयी, पर मन ही मन आशा भी करने लगी कि बिटिया कुछ दिनों के लिए आ जाती तो अच्छा रहता।
सागर और सोनी जानते थे कि सुनंदा नहीं आएगी, पर दिल नहीं मानता था। धीरे धीरे शाम हो आयी। कुछ देर बाद सागर बोले – आज चाय नहीं पिलाओगी।
सोनी – लाती हूं।
कुछ देर में जब दोनों चाय पीने लगे तब कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था। अचानक सोनी बोल पड़ी – नाहक खेलावन बिटिया को फोन कर दिया।
सागर बोल उठा – दिल न लगा पगली। जिंदगी तो हम दोनों को ही काटनी है। दोनों बेटे तो यहाँ आने से रहे। उनसे कोई शिकायत नहीं है। हम विदेश जाना नहीं चाहते। वहाँ मन नहीं लगता। बिटिया के घर समस्याएँ ही समस्याएँ हैं। वह चाहकर भी नहीं आ पाएगी।
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समय पंख लगाकर कैसे उड़ गया, पता ही नहीं चला।
सागर कुछ ढूंढ रहे थे कि अचानक बिटिया की शादी का अल्बम दिख गया। अल्बम को उठा कर सोफे पर बैठ गए। उसी समय सोनी भी आ गयी। दोनों देखने लगे। दोनों की आँखों से झर झर आँसु बहने लगे। बहुत दिनों का आँखों का बाँध कब टूट गया, पता ही नहीं चला।
स्त्रियों को एक घर संसार, जहाँ वह पली, बढ़ी, खेली,कूदी है एवं एक उम्र तक जन्मदाताओं के सान्निध्य उनके प्यार का वरण एवं वितरण किया है, को शादी के बाद दूसरी जिम्मेदारी मिलती है – एक अंजान से घर एवं पराए को अपने भावी जीवन का हिस्सा बनाने एवं नया संसार रचने एवं रमने के लिए। पुरातन और नूतन घर संसार रचने में स्त्रियाँ दक्ष होती हैं, इसीलिए उसे लक्ष्मी एवं अन्नपूर्णा कहा जाता है, माँ बनने का सबसे बड़ा सुख भी प्राप्त होता है। स्व को खोकर पुनः नए स्व को गढ़ने की परंपरा ही परिणय बंधन / शादी कहलाती है। आँसु तो पुरातन से नूतन बनने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं।
अचानक घर की बेल बजी। सागर सोचे कि खेलावन आया होगा पर ज्योंहि दरवाजा खोला, चिल्ला पड़े – सोनी, बिटिया आयी है, दामाद जी भी हैं।
सोनी दौड़ी आयी और गोद में नाती को ले ली।
सब अंदर पंहुचे। परिमल के हाँथों में पहली बार कोई गिफ्ट का पैकेट देखा। सागर पूछ बैठा – कहीं कोई शादी वगैरह में आयी हो क्या ?
परिमल बोला – नहीं बाबूजी, आप दोनों के लिए लाया हूं। मेरी नौकरी बैंक में लग गयी है। पोस्टिंग बहुत चाहा कि लखनऊ में मिल जाए पर नहीं मिला। दिल्ली पोस्टिंग मिली है, जबतक कोई डेरा खोज नहीं लेता, साथ रहेंगे।
सागर अवाक हो गए, फिर बोले – यह आपका ही घर है, जबतक यहाँ हैं, हमारे साथ ही रहें। हमलोगों को बहुत ही अच्छा लगेगा। इतना बड़ा घर कब काम आएगा ?
सुनंदा बोल पड़ी – बाबूजी, मेरे मां बाबूजी भी कुछ दिनों में आने वाले हैं। कहे हैं, पहले डेरा ले लो, तब आएंगे।
सोनी ने सागर को कहा – परिमल के पिताजी को फोन लगाईए।
सागर फोन लगाकर बोले, लो बात कर लो।
सोनी – नमस्ते भाई साहब। परिमल और सुनंदा बिटिया पंहुच गए हैं और आपसे प्रार्थना है कि आप और भाभी जी, जितना जल्द हो रिजर्वेशन करवा लें और चले आएं। सब कोई अब साथ ही रहेंगे और सुख दुःख बाँटेंगे।
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श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार