पर्यावरण

20 मार्च : विश्व गोरैया दिवस

भारत में लगातार ही गोरैया घटती जा रही है, किंतु इसे सिर्फ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का आसरा है, जबकि ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में यह पक्षी रेड अलर्ट लिस्ट में शामिल है । पक्षी वैज्ञानिक संवेदनशील है, किंतु अपनी ही सुख-सुविधा और विलासिता में डूबे लोग गोरैया की विलुप्तता को गाम्भीर्यमूलक नहीं लेते हैं । दरअसल, इस पक्षी के गायब होने की सही पड़ताल देश में अबतक नहीं हो पाई है।

हमारी अत्याधुनिक सुविधाओं से लेश होने की प्रवृत्ति हमारी प्रकृति को ढा दे रही है। ऐसे-ऐसे मकान बना रहे हैं कि इसतरह के प्राणियों के लिए जरा-सी भी जगह नहीं छोड़ रहे हैं । इनके प्रति हमारा अनुदार रवैया यानी वे विष्ठा (शौच) न कर दे, इस लिहाज से उनके घोंसले को उजाड़ फेंकते हैं । तिनके-तिनके जोड़कर उनके नीड़ निर्माण कोह नेस्तनाबूद कर डालते हैं । दूसरी ओर घर और वृक्ष के कोटरों में रहनेवाले साँप सहित, कौवे, कागे, बिल्ली-बिल्ला, बाज़, चील्हे इत्यादि हिंसक जीवों के क्रूर रवैये से उनके अंडे तो बचते नहीं ही है, वे भी किसी न किसी रात उन हिंसक जीवन के ग्रास बन जाते हैं। विदित हो, जवान गोरैया के मस्तक के ऊपरी हिस्सा और गर्दन का पिछला हिस्सा गहरे भूरे रंग का होता है, यह पूरी तरह से सफ़ेद गालों पर गुर्दे के आकार का काला धब्बा होता है।

दाढ़ीवाले हिस्से, गर्दन तथा गर्दन और चोंच के मध्यांश भी काले रंग का होता है। ऊपरी अंश साफ भूरे रंग के नहीं होते हैं, बल्कि यह हल्केपन लिए होते हैं और उस पर काली धारियां होती हैं, तो इनके भूरे पंखों पर दो पतली व स्पष्ट सफ़ेद पट्टियां होती हैं। इनके पैर हल्केपन लिए भूरे रंग के होते हैं और गर्मियों में इनकी चोंच का रंग नीले पारदर्शी जैसे हो जाते है , जो सर्दी पड़ते ही उनमें कृष्णसदृश्य वर्ण के सापेक्ष हो जाते हैं । अपनी बिरादरी के अंतर्गत भी गोरैया भिन्न-भिन्न होती हैं, इनमें नर और मादा के बीच पंखों में कोई अंतर नहीं होता । यह जवानी और प्रौढ़ता आयु में भी एक सदृश्य दिखते हैं, बशर्त्ते इनमें भी प्रौढ़ावस्था में कुछ-कुछ मायूसी परिलक्षित होती जाती है । हाँ, रंग फीकेपन लिए हो जाते हैं।

इनके चहरे पर सरलताभाव आने लगते हैं । नर गोरैया में एक अंतर और आ जाती है, उनके धड़ पर भूरे रंग छींटे लिए आबद्ध हो जाते हैं । वे शारीरिक समृद्धि लिए हल्के मोटे भी हो सकते हैं यानी उनमें वजन या मांसल वृद्धि आने लगती है । खून में जलीय तत्व लिए सक्रिय हो जाता है । हालाँकि यह फुर्ती का सूचक नहीं, तथापि शिकारी देखते ही वह फुर्र हो जाते हैं । घर और खेत-खलिहानों में जीवन-बसर करनेवाले गोरैयों में संगीत अभिलक्षण भी आबद्ध हो जाती है, वे जब एक-दूसरे के प्रति यानी प्रेमालाप को लेकर चुहलबाजी करने लगते हैं तो उत्तेजना में आकर प्रणय-निवेदन कर बैठते हैं, जो कि उनकी भाषा ‘चि-चि’ में प्रेमालाप होता है।

शुरुआत नर गोरैया करते हैं और मादा गोरैया इनमें भाव-विह्वल हो सादर समर्पित हो जाती है । गीतों में लयबद्धता या अंताक्षरी उनके ही विहित है । मनुष्यों के साथ उनके व्यवहार सार्थक हैं, तभी तो मनुष्य जहाँ-जहाँ गए, गोरैये भी उनके हमसफ़र होते चले गए। मूलत:, उन्हें मित्रवत जनसमूह से कोई परेशानी नहीं है, किंतु वे शीघ्र शत्रुता भाववाले जनसमूहों की शीघ्र पहचान कर लेते हैं ! पर्यावरण में शोरगुल, डीजे की आवाज, मोटर-ट्रेनों को झिकझुक-भौंभौं, मोबाइल टावरादि से निःसृत रेडिएशन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रे से उनमें भय घर जाते हैं और वे ठीक से एक-दूसरे के प्रति प्रेमालाप नहीं कर पाते हैं।

वृक्षों की हरियाली भी उन्हें पसंद है । ये कमी विविधता लिए है, जिससे अंडोत्पन्न में अक्षम हो रहे हैं । उन्हें नमकीन चीजें या नमकघुली वस्तुएँ से उनकी आयु घट रही है । उन्हें ऐसे भोज्य पदार्थ प्राप्त नहीं होनी चाहिए । अंडे उत्पत्ति पर भी भय के कारण उसे सेवने में समस्या आड़े आ रही है। विश्व गोरैया दिवस पर मेधाविनी मोहन जी ने सत्याग्रह के लिए समीक्षा की है कि इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि इनकी संख्या आंध्र प्रदेश में 80 फीसदी तक कम हुई है और केरल, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में इसमें 20 फीसदी तक की कमी देखी गई है । इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में यह गिरावट निश्चित रूप से 70 से 80% तक दर्ज की गई है।

विश्व भर में गोरैया की 26 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 5 भारत में देखने को मिलती हैं । नेचर फॉरेवर सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के विशेष प्रयासों से वर्ष 2010 में पहलीबार विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था । तब से ही यह दिन पूरे विश्व में हर वर्ष 20 मार्च को गोरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है । गोरैया के जीवन संकट को देखते हुए वर्ष 2012 में उसे दिल्ली के राज्य पक्षी का दर्जा भी दिया गया था । हालात अभी भी जस के तस ही हैं. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी सिटीज़न स्पैरो के सर्वेक्षण में पता चला कि दिल्ली और एनसीआर दिल्ली में वर्ष 2005 से गोरैया की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। सात बड़े शहरों में हुए इस सर्वेक्षण में सबसे ख़राब नतीजे हैदराबाद में देखने को मिले। उत्तर प्रदेश में भी तत्कालीन सरकार के समय गोरैया के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास और जागरूकता अभियान चलाए गए थे, पर वर्तमान में सब ठप है। यूपी, एमपी और राजस्थान में पक्षियों के संरक्षण के लिए कार्य करनेवाली संस्था भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान की अध्यक्ष सोनिका कुशवाहा बताती है कि गोरैया के संरक्षण की प्रक्रिया में एक मुश्किल उसकी गणना में आती है, फिर भी रिहायशी और हरियाली वाले इलाकों में सर्वेक्षण और लोगों की सूचना की मदद से उसे गिनने की कोशिश की जाती है।

इसके लिए हम लोगों से अपील करते हैं कि अपने आसपास दिखाई देने वाली गौरैया की संख्या की जानकारी हम तक पहुंचाइये । वर्ष 2015 की गणना के अनुसार लखनऊ में सिर्फ 5,692 और पंजाब के कुछ चयनित इलाकों में लगभग 775 गौरैया थी । वर्ष 2017 में तिरुवनंतपुरम में सिर्फ 29 गौरैया पाई गई, जो दुःखद स्थिति है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.