पीड़ा
जैसे छीन रहे हो मुझसे उन्हें
वैसे खुदा तुमसे
कोई अपना छीने तो
क्या तुम्हें दर्द नहीं होगा?
जैसे जी रहा हूं मैं
तडफ़ तडफ़ उसके बिना
अगर तुम्हें भी जीना पड़े
किसी अपने के बिना तो?
जैसे मुस्कुरा रहा हूं
छुपाए सीने में दर्द अपने
अगर तुमको भी जीना पड़े
किसी अपने के लिए दर्द में तो?
जैसे मर रहा हूं हर पल
मैं उनके बिना
अगर तुम्हें नहीं जीना पड़े
हर पल किसी अपने के बिना तो?
— राजीव डोगरा ‘विमल’