वे छह शिकायतें
उस दिन महिलाओं द्वारा की गई शिकायतों की सुनवाई के समय मैं भी उपस्थित था। शिकायतों की सुनवाई बारी-बारी हुई।
पहली लड़की आई। उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहा गया। उस लड़की को मैं ध्यान से देख रहा था, जिसकी उम्र सत्ररह-अट्ठारह वर्ष के बीच थी। उसके खामोशी भरी उदास चेहरे से ऐसा लगा जैसे किसी सर्द और खामोश रात में बर्फ सी जमी झील पर कुहासे का धुंध छाया हो। उसे अपने पति से गुजारा भत्ता चाहिए, इस बात से मुझे किंचित आश्चर्य हुआ। ‘पति इसे दो साल से छोड़ सुदूर मुंबई में रहता है! पंद्रह वर्ष से भी कम उम्र में इसका निकाह हुआ होगा और क्या पता इसका पति गुजारा भत्ता देने लायक है भी या नहीं? लड़की अनपढ़ भी है इसका भविष्य क्या होगा?’ लड़की की त्रासदी पर मैंने सोचा। किसी ने उससे पूँछा, ‘क्यों तुम पढ़ना चाहोगी’। लड़की ने प्रश्न करने वाले की ओर देखा और देखती रही। जैसे उससे कुछ अजूबा सवाल पूँछ लिया गया हो। उसके मुंह से बोल नहीं फूटे। शायद उसे पढ़ाई के मायने भी नहीं बताए गए थे। कम उम्र में शादी करने तथा पति के गुजारा भत्ता देने लायक होने के बारे में उसकी मां का कहना था, “वह छोटा-मोटा काम करता है…जल्दी निकाह इसलिए किया कि, न करती तो क्या करती और भी तो लड़कियां हैं..लड़के भी तो हैं…धीरे-धीरे सभी को निपटाना है।” गरीबी और अशिक्षा के साथ धर्म का घालमेल व्यक्ति के जीवन को नर्क बनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखता। अन्त में समस्या का समाधान न सूझने पर लड़की की मां से यही कहा गया, ‘इस बच्ची को पढ़ाई के साथ कुछ सिलाई-कढ़ाई भी सिखाओ।’
दूसरी लड़की भी उम्र उन्नीस-बीस से ज्यादा नहीं थी। वह स्याह स्लेट पर खड़िया से लिखी किसी इबारत की तरह लगी, जिसे मिटाने का प्रयास किया गया हो। शिकायती पत्र देते समय उसकी खामोशी पिघल कर आँखों से बह निकली। रोते हुए उसने कहा, वे मुझे मार डालेंगे। दरअसल इस मुस्लिम लड़की का निकाह अल्पवय में कर दिया गया था। पति का चाचा उसे परेशान करता है। उसकी बातों से लगा कि वह यौन-उत्पीड़न की शिकार है। पति से शिकायत करने पर वह इस बात पर ध्यान नहीं देता। उसके मामले में पुलिस को हस्तक्षेप करने के लिए कहा गया।
तीसरी लड़की चौबीस-पच्चीस वर्ष के आसपास थी। अनपढ़ थी और पति से अनबन होने के कारण मायके में रह रही थी। उसके पति को भी बुलाया गया। वह पढ़ा-लिखा और स्मार्ट दिखाई पड़ा। समझाने पर वह लड़की को साथ ले जाने के लिए सहमत हो गया । दरअसल यहां बेमेल विवाह की समस्या थी। इसी तरह चौथी लड़की का पति तलाक चाहता था।
पाँचवीं शिकायत एक महिला की थी, जिसकी उम्र अड़तीस-चालीस वर्ष के आसपास थी। उसका पति किसी बड़े शहर में माली का काम करता है और वह अपने परिवार की आय बढ़ाने के लिए घरों में खाना बनाने का काम करती है। उसकी समस्या यह थी कि उसकी बहू मायके से ससुराल पिछले एक साल से नहीं आ रही थी। लड़की के माता-पिता भी उसे ससुराल भेजने में रुचि नहीं दिखा रहे थे। जबकि वह महिला बहू को अपने घर लाने के लिए परेशान थी। उसके अनुसार बहू पढ़ी-लिखी और कम्प्यूटर चलाना जानती है और आत्मनिर्भर है जबकि लड़का आठवीं तक ही पढ़ा है।
छठी लड़की की आयु तेईस वर्ष के लगभग थी। वह बिना बाँह के कुर्ता पहने थी और पारदर्शी दुपट्टा ओढ़े थी। उसका पहनावा परिस्थितियों के अनुरूप न होने से अस्वाभाविक जान पड़ा। उसकी भृगुटी थोड़ी चढ़ी हुई और चेहरे पर तनाव झलक रहा था। जब मुझे पता चला कि लड़की का पति उसके साथ नहीं रहना चाहता और वैवाहिक संबंध तोड़ना चाह रहा है, तो मुझे लगा कि इस लड़की को समझने की जरूरत है। स्वभावत: यह लड़की ईमानदार होगी और हो सकता है जो चीज इसे अच्छी न लगती हो उसका विरोध करती हो। लेकिन शायद उसका यह गुण उसकी वैवाहिक समस्या का कारण बन रहा हो। लड़की का पिता उसकी शादी टूटने के अंदेशे से दुःखी होकर रो रहा था। उसकी समस्या यह थी कि कैसे वह लड़की की दूसरी शादी करेगा।
दरअसल इन छह शिकायतों में ऊपर की चार शिकायतें मुस्लिम लड़कियों की थी और पांचवीं तथा छठी हिंदू लड़कियों की। ‘धर्म’ महिलाओं की सुरक्षा और उसके अधिकार की चिंता नहीं करते तथा धार्मिक मान्यताएं महिलाओं का हितपोषण भी नहीं करती। अधिकांशतः ‘धार्मिक मान्यताएं’ पुरुषवादी सत्ता का पोषण करती हैं, जिसमें स्त्रियां दोयम दर्जे की नागरिक बनकर रह जाती है। यह सच है कि स्त्रियों के लिए जाति और धर्म का कोई अर्थ नहीं होता। विवाह-व्यवस्था कहीं संविदा तो कहीं धार्मिक-बंधन के रूप में स्वीकार किया गया है, लेकिन सही अर्थों में स्त्रियों की प्रताड़ना के पीछे मानव स्वभाव उत्तरदायी होता है और स्वभाव व्यक्ति की परिवेशगत परिस्थितियों से निर्मित होता है।
पहली लड़की आई। उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहा गया। उस लड़की को मैं ध्यान से देख रहा था, जिसकी उम्र सत्ररह-अट्ठारह वर्ष के बीच थी। उसके खामोशी भरी उदास चेहरे से ऐसा लगा जैसे किसी सर्द और खामोश रात में बर्फ सी जमी झील पर कुहासे का धुंध छाया हो। उसे अपने पति से गुजारा भत्ता चाहिए, इस बात से मुझे किंचित आश्चर्य हुआ। ‘पति इसे दो साल से छोड़ सुदूर मुंबई में रहता है! पंद्रह वर्ष से भी कम उम्र में इसका निकाह हुआ होगा और क्या पता इसका पति गुजारा भत्ता देने लायक है भी या नहीं? लड़की अनपढ़ भी है इसका भविष्य क्या होगा?’ लड़की की त्रासदी पर मैंने सोचा। किसी ने उससे पूँछा, ‘क्यों तुम पढ़ना चाहोगी’। लड़की ने प्रश्न करने वाले की ओर देखा और देखती रही। जैसे उससे कुछ अजूबा सवाल पूँछ लिया गया हो। उसके मुंह से बोल नहीं फूटे। शायद उसे पढ़ाई के मायने भी नहीं बताए गए थे। कम उम्र में शादी करने तथा पति के गुजारा भत्ता देने लायक होने के बारे में उसकी मां का कहना था, “वह छोटा-मोटा काम करता है…जल्दी निकाह इसलिए किया कि, न करती तो क्या करती और भी तो लड़कियां हैं..लड़के भी तो हैं…धीरे-धीरे सभी को निपटाना है।” गरीबी और अशिक्षा के साथ धर्म का घालमेल व्यक्ति के जीवन को नर्क बनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखता। अन्त में समस्या का समाधान न सूझने पर लड़की की मां से यही कहा गया, ‘इस बच्ची को पढ़ाई के साथ कुछ सिलाई-कढ़ाई भी सिखाओ।’
दूसरी लड़की भी उम्र उन्नीस-बीस से ज्यादा नहीं थी। वह स्याह स्लेट पर खड़िया से लिखी किसी इबारत की तरह लगी, जिसे मिटाने का प्रयास किया गया हो। शिकायती पत्र देते समय उसकी खामोशी पिघल कर आँखों से बह निकली। रोते हुए उसने कहा, वे मुझे मार डालेंगे। दरअसल इस मुस्लिम लड़की का निकाह अल्पवय में कर दिया गया था। पति का चाचा उसे परेशान करता है। उसकी बातों से लगा कि वह यौन-उत्पीड़न की शिकार है। पति से शिकायत करने पर वह इस बात पर ध्यान नहीं देता। उसके मामले में पुलिस को हस्तक्षेप करने के लिए कहा गया।
तीसरी लड़की चौबीस-पच्चीस वर्ष के आसपास थी। अनपढ़ थी और पति से अनबन होने के कारण मायके में रह रही थी। उसके पति को भी बुलाया गया। वह पढ़ा-लिखा और स्मार्ट दिखाई पड़ा। समझाने पर वह लड़की को साथ ले जाने के लिए सहमत हो गया । दरअसल यहां बेमेल विवाह की समस्या थी। इसी तरह चौथी लड़की का पति तलाक चाहता था।
पाँचवीं शिकायत एक महिला की थी, जिसकी उम्र अड़तीस-चालीस वर्ष के आसपास थी। उसका पति किसी बड़े शहर में माली का काम करता है और वह अपने परिवार की आय बढ़ाने के लिए घरों में खाना बनाने का काम करती है। उसकी समस्या यह थी कि उसकी बहू मायके से ससुराल पिछले एक साल से नहीं आ रही थी। लड़की के माता-पिता भी उसे ससुराल भेजने में रुचि नहीं दिखा रहे थे। जबकि वह महिला बहू को अपने घर लाने के लिए परेशान थी। उसके अनुसार बहू पढ़ी-लिखी और कम्प्यूटर चलाना जानती है और आत्मनिर्भर है जबकि लड़का आठवीं तक ही पढ़ा है।
छठी लड़की की आयु तेईस वर्ष के लगभग थी। वह बिना बाँह के कुर्ता पहने थी और पारदर्शी दुपट्टा ओढ़े थी। उसका पहनावा परिस्थितियों के अनुरूप न होने से अस्वाभाविक जान पड़ा। उसकी भृगुटी थोड़ी चढ़ी हुई और चेहरे पर तनाव झलक रहा था। जब मुझे पता चला कि लड़की का पति उसके साथ नहीं रहना चाहता और वैवाहिक संबंध तोड़ना चाह रहा है, तो मुझे लगा कि इस लड़की को समझने की जरूरत है। स्वभावत: यह लड़की ईमानदार होगी और हो सकता है जो चीज इसे अच्छी न लगती हो उसका विरोध करती हो। लेकिन शायद उसका यह गुण उसकी वैवाहिक समस्या का कारण बन रहा हो। लड़की का पिता उसकी शादी टूटने के अंदेशे से दुःखी होकर रो रहा था। उसकी समस्या यह थी कि कैसे वह लड़की की दूसरी शादी करेगा।
दरअसल इन छह शिकायतों में ऊपर की चार शिकायतें मुस्लिम लड़कियों की थी और पांचवीं तथा छठी हिंदू लड़कियों की। ‘धर्म’ महिलाओं की सुरक्षा और उसके अधिकार की चिंता नहीं करते तथा धार्मिक मान्यताएं महिलाओं का हितपोषण भी नहीं करती। अधिकांशतः ‘धार्मिक मान्यताएं’ पुरुषवादी सत्ता का पोषण करती हैं, जिसमें स्त्रियां दोयम दर्जे की नागरिक बनकर रह जाती है। यह सच है कि स्त्रियों के लिए जाति और धर्म का कोई अर्थ नहीं होता। विवाह-व्यवस्था कहीं संविदा तो कहीं धार्मिक-बंधन के रूप में स्वीकार किया गया है, लेकिन सही अर्थों में स्त्रियों की प्रताड़ना के पीछे मानव स्वभाव उत्तरदायी होता है और स्वभाव व्यक्ति की परिवेशगत परिस्थितियों से निर्मित होता है।