गज़ल
बच्चे की तरह शैतान सा है
दिल अभी ज़रा नादान सा है
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अभी सीखा नहीं फरेब इसने
रस्म-ए-दुनिया से अंजान सा है
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उनको परवाह ही नहीं तेरी
तू क्यों मुफ्त में परेशान सा है
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ज़रूरी था कल जो जीने की खातिर
आज किसी फालतू सामान सा है
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चुभता है ये क्या सीने के अंदर
कुछ टूटे हुए अरमान सा है
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आभार सहित:- भरत मल्होत्रा।