नीर की महत्ता के दोहे
नीर से सांसें चल रही,देवों का आभास ।।अमृत जैसा है “शरद”, कहते जिसको नीर ।
एक बूंद भी कम मिले,तो बढ़ जाती पीर ।।
नीर बिना जीवन नहीं,अकुला जाता जीव ।
नीर फसल औ’ अन्न है,नीर “शरद” आजीव ।।
नीर खुशी है,चैन है,नीर अधर मुस्कान ।
नीर सजाता सभ्यता,नीर बढ़ाता शान ।।
जग की रौनक नीर से,नीर बुझाता प्यास ।
कुंये,नदी,तालाब में,है जीवन की आस ।।
सूरज होता तीव्र जब,मर जाते जलस्रोत ।
घबराता इंसान तब,अनहोनी तब होत ।।
नीर करे तर कंठ नित,दे जीवन को अर्थ ।
नीर रखे क्षमता बहुत,नीर रखे सामर्थ्य ।।
नीर नहीं बरबाद हो,हो संरक्षित नित्य ।
नीर सृष्टि पर्याय है,नीर लगे आदित्य ।।
नीर बादलों से मिले,कर दे धरती तृप्त ।
बिना नीर के प्रकृति यह,हो जाती है तप्त ।।
नीर पूज्य है ,वंदगी,देता है आनंद ।
नीर देव की जय करो,जो है ब्रम्हानंद ।।