मुक्तक/दोहा

नीर की महत्ता के दोहे

नीर ईश का रूप है,पंचतत्व का सार।
नीर नहीं तो व्यर्थ है,यह सारा संसार।।
नीर लिए आशा सदा,नीर लिए विश्वास ।
नीर से सांसें चल रही,देवों का आभास ।।अमृत जैसा है “शरद”, कहते जिसको नीर ।
एक बूंद भी कम मिले,तो बढ़ जाती पीर ।।

नीर बिना जीवन नहीं,अकुला जाता जीव ।
नीर फसल औ’ अन्न है,नीर “शरद” आजीव ।।

नीर खुशी है,चैन है,नीर अधर मुस्कान ।
नीर सजाता सभ्यता,नीर बढ़ाता शान ।।

जग की रौनक नीर से,नीर बुझाता प्यास ।
कुंये,नदी,तालाब में,है जीवन की आस ।।

सूरज होता तीव्र जब,मर जाते जलस्रोत ।
घबराता इंसान तब,अनहोनी तब होत ।।

नीर करे तर कंठ नित,दे जीवन को अर्थ  ।
नीर रखे क्षमता बहुत,नीर रखे सामर्थ्य ।।

नीर नहीं बरबाद हो,हो संरक्षित नित्य ।
नीर सृष्टि पर्याय है,नीर लगे आदित्य ।।

नीर बादलों से मिले,कर दे धरती तृप्त ।
बिना नीर के प्रकृति यह,हो जाती है तप्त ।।

नीर पूज्य है ,वंदगी,देता है आनंद ।
नीर देव की जय करो,जो है ब्रम्हानंद ।।

नीर नहीं तो शुष्क सब,करो नीर का गान।
बूँद-बूँद से घट भरे,आज सभी लें जान।।
— प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]