मै क्या करूँ
मै क्या करूँ ,
समझ नहीं पा रहा हूं ,
आखिर क्यों मै इतना सोचता हू ,
मै इतना जीवन के सपने देखता था ,
मै क्यों इतना पागल होता हूं ,
दिल मे हमेशा दर्दो का महफिल लगा होता है ,
आंखों में हमेशा आंसू भरा रहता है ,
आखिर क्यों ऐसा मेरे साथ ही होता है ,
जब भी अकेला होता हूं ,
आंखों में पानी भर जाता है ,
दिल करता है ,
मै स्वयं को समाप्त कर लू ,
ऐसा क्यों होता है ,
शायद मेरी जिन्दगी की आखिरी शब्द हो ,
या शायद मै ही आखिरी हू ,
अब इस दर्द से मुझे रहा नहीं जा रहा है ,
आखिर क्यों मै अलग महसूस करता हू ,
स्वयं को मै डिप्रेशन में महसूस कर रहा हूं ,
कुछ सोच नही पाता हू,
दुनिया की दुनियादारी ,
समाज की मजबुरी ,
मुझे ना जीने देती है ना मरने देती है ,
मै क्या करूँ ,
कोई बताए मुझे ,
या आत्म को स्वयं मे लिप्त कर दू ,
मुझे इस नश्वर दुनिया में ,
सिर्फ अशांति ही अशांति ,
जी करता है जोगी ही बन जाऊँ ,
मुझे अब दुनिया से रिश्ते-नाते ,
सभी अनसुलझा लगता है ,
ना अब आत्मविश्वास बच पाया ,
और ना अब अपनी लालसा ,
मै क्या करूँ !
— रुपेश कुमार