‘विश्व कविता दिवस’ पर मार्मिक कविताएँ
सोचता हूँ,
अपना नीतीश काका
खाँटी बिहारी हैं,
यही ठीक रहेगा
कि सचिन
क्रिकेट के
भगवान की भाँति
काका भी
नियोजित शिक्षकों के
भगवान हो जाय
कि जड़ी-बूटी बाँचने का
लंबा अनुभव है उन्हें
पुड़िया में
अच्छी गाँठ लगाते हैं
फिर तो काकी भी
शिक्षिका थी
काका को आगे बढ़ाने में
काकी की योगदान
अविस्मरणीय रही !
वरना वे तो
इंजीनियरिंग डिग्री
फाड़ चुके है !
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क्या हम पुंलिंग
औरत-औरत
रटते हैं सिर्फ
परनारी पे लार
टपकाने ही
हम पुंलिंगों के
व्याकरण हैं
पर जिनकी बीवी
सुंदर है,
वो भी क्यों
बाज़ार जाते हैं ?
क्या धनी
और सुंदर औरत
सुनंदा हो जाएंगी !
इसलिए बचिए,
इसे यूँ ही पहेली
नहीं कही जाती !
कि हुक्के का मुँह
और औरत के ओठ
जूठे नहीं होते
निराला जी ने
कहा था कभी !
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एक दोस्त की वो बातें
हमेशा याद आती है
कि मैं कहता हूँ-
फटा है,
पुराना है,
पर मेरा बिहार
महान है !
पर वो कहती है
मेरा बिहार नहीं,
लाख परेशानी हो यहाँ,
फिर भी कोई प्रान्त नहीं,
अपितु भारत महान है,
भारत महान है !
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