मैं जल-कल और हल हूँ
(1)
धरती का अमोल रत्न हूँ
मैं जल-कल और हल हूँ।
चलता जीवन मेरे सहारे
हरेक जीव का मैं बल हूँ।
एक बूंद को तरसती दुनिया
ग्रीष्म से तड़पती दुनिया।
पक्षियों ने तोड़ा प्यास से दम
संभल मानव जीवन है कम।
कर मत व्यर्थ अमृत को
समझ ले इसके महत्व को।
अनमोल बहुत एक बूँद पानी
सारी दुनिया इसकी दीवानी।
(2)
धरती का अमोल रत्न हूँ
मैं जल-कल और हल हूँ।
चलता जीवन मेरे सहारे
हरेक जीव का मैं बल हूँ।
बिन इसके न रह पायेगा तू
पग-पग ठोकर खायेगा तू।
अब तो समझ इसकी कहानी
नानी से सुन तू मुंह जबानी।
जल ही प्रारंभ,मध्य और अंत
कहते ज्ञानी-विज्ञानी और संत।
इसका नहीं है कोई आकार
जल ही जीवन का मूलाधार।
(3)
धरती का अमोल रत्न हूँ
मैं जल-कल और हल हूँ।
चलता जीवन मेरे सहारे
हरेक जीव का मैं बल हूँ।
पानी ही पानी जग की कहानी
सूखा कहीं तो कहीं आसमानी।
बूँद की डोर से जीवन बँधा है
इसके सहारे प्राणी सदा है।
रहस्य समझ छोड़ नादानी
मन से कर ले इसकी निगरानी।
इसके रहते ही तू रह पायेगा
अन्यथा जीवन व्यर्थ गवांएगा।
— डॉ. निशा नंदिनी गुप्ता