अकेला चना
नब्बे के दशक में उनके पिताजी राजेन्द्र बाबू के निधन से पहले भी, अर्थात उनके जीवित रहते भी आनंद कुमार के परिवार ‘पापड़’ रोजगार से जुड़ चुके थे !
आर्थिक दिक्कतों के कारण ही वह ट्यूशन पढ़ाया करते थे, ट्यूशन को कोचिंग में परिणत करने के सोद्देश्य B M DAS रोड किनारे, जो कि अशोक राजपथ से आकर मिलती है, एक कोचिंग संस्थान खोला !
एक साल बाद ही नामकरण हुआ- ‘रामानुजन स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स’ ! कालांतर में यह कुम्हरार चला गया, वहीं अजिताभ कौशल सर से मेरी मुलाकात हुई थी, जो कि आनंद कुमार के गणितीय -आलेखों के Mathematics Journal में प्रकाशनार्थ ‘मार्गदर्शक’ थे !
पहले आनंद कुमार घर पर ही ट्यूशन करते थे, संघर्ष के दौरान अगर मैं उनका घर गया होगा, तो दीगर बात है ! B N COLLEGE में एडमिशन व वहाँ पढ़ने के कारण उनका साबका पटना के ‘मुखर्जीनगर’ के संज्ञार्थ व पर्यार्थ महेन्द्रू -मुसल्लहपुर -बी एम दास रोड से हुआ ।
मैं उसे बतौर ट्यूटर व एक जोड़ी टेबल -कुर्सी लगाए खुद के संस्थान में एडमिशन हेतु सिंपल विज्ञापक व छोटा -मोटा डायरेक्टर के रूप में रोज देखता, जो कि चाय तक पिला नहीं पाते थे और पेपर तक खरीद नहीं पाते थे ! बाद में इसी सेंटर से उनके छोटे भाई प्रणव कथित ‘डायरेक्टर’ हुए !
सनद रहे, अखबारों के स्थानीय संवाददाताओं से उनकी जमती अच्छी थी । तिलक सर से भी उनकी छनती थी । गणितज्ञ अजिताभ कौशल उनकी सूत्रों पर टीका -टिप्पणी किया करते थे।
शायद इसी समय पटना में ‘तथागत अवतार तुलसी’ का उभार हुआ था । हमदोनों के गणितीय सूत्र इस उभार में दब जाते थे ! तथागत ने ‘पाई’ का विशुद्ध मान खोजने का दावा किया था, इसतरह के समाचार अखबारों व प्रतियोगिता किरण आदि पत्रिकाओं में छप चुकी थी, उस समय तथागत ही ‘कौटिल्य पंडित’ थे !
कालांतर में, Physics ही तथागत का विषय रहा और वे गणित विधा से दूर होते चले गए, किंतु इस ‘वन्डर ब्वॉय’ से एक दिन हम दोनों मुलाकात किये, जो कि अकेले में नहीं रहा….
क्योंकि अकेले में मैं उनसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता था, परंतु उनके पिताजी तुलसी नारायण प्रसाद जी ने ऐसा होने नहीं दिया, कुछ पूछते तो तथागत के पिताजी ही टोक देते थे और तब मुझे तथागत जटिल नहीं लगा था !