कहाँ भगतसिंह सोता होगा
उम्र अभी तेईस से थी कम,
मगर बाँह में शेरों-सा दम
मिट जायेंगे ना था ये ग़म
अंग्रेज़ों की साँस गयीं थम
इंकलाब का सिंहनाद था
गूँज उठा सारा अकाश था
मगर न दो जन घबराते थे
परचे – परचे बिखराते थे
जब संसद में आग लगी थी
और हुकूमत जाग उठी थी
आज सदन की चाल है बदली
मुर्गी बदली दाल भी बदली
अपनी बीन बजाते हैं सब
अपनी भैंस नचाते हैं सब
जिसकी लाठी उसकी भैंसी
हटो तुम्हारी ऐसी तैसी
घोड़ों का बाज़ार है संसद
वोटों का व्यापार है संसद
नेता टट्टू बन जाते हैं
जब सिक्कों में बँट जाते हैं
डाकू – ढोंगी – अत्याचारी
दिखते हों जब भ्रष्टाचारी
बलात्कार – खूँ के अपराधी
ओढ़ के बैठे हो जब खादी
नैतिकता की खाट खड़ी हो
मानवता की लाश पड़ी हो
जोकर शोर मचाते हो जब
कौए राग सुनाते हो जब
खून के आँसू रोता होगा
कहाँ भगतसिंह सोता होगा?
🙏🌹शहीदों के चरणों में नमन🌹🙏
— शरद सुनेरी