ग़ज़ल- आँख मारकर गला दबाया जाता
खूंखारों का धर्म बताया जाता है
गद्दारों को फ़र्ज़ जताया जाता है।
धूल भरी है जिनकी क़ातिल आँखों में
दर्पण अंधों को दिखलाया जाता है।
कर दें ना बरबाद सियासत की चालें
चोरों को कोतवाल दिखाया जाता है।
सजे मिलेंगे कई भयानक से चेहरे
जब भी इन परदों को हटाया जाता है।
हम समझे थे वो पलकों पर थामेंगे
पर नज़रों से हमें गिराया जाता है।
धक्का देकर बढ़ना कोई बात नहीं
थाम के बाँहें फ़र्ज़ निभाया जाता है।
इतना गिरे गिरावट की थी थाह नहीं
राजनीति में उन्हें उठाया जाता है।
ज़रा बचाकर दामन को अपने रखना
आँख मारकर गला दबाया जाता है।
हुईं फ़िजाएँ गुलशन की अब हत्यारी
बुलबुल को भी वार सिखाया जाता है।
ये दौर बड़ा है ‘शरद’ तिजारत का भाई
जो माल दिला दे उसे बुलाया जाता है।
— शरद सुनेरी