बसन्त (दोहे)
बसन्त (दोहे)
मधु ऋतु ने दस्तक करी ,दशों दिशा हुलसाय |
अमराई बौरों भरी , गली गली महकाय ||
हरे रंग का घाघरा ,लहर – लहर लहराय|
पीली चुनरी ओढ़ के , धरा रही मुस्काय ||
विविध रंग के पुष्प से, धरा सज गयी आज|
पवन बसन्ती बह रही , बजे सुरीले साज |
प्रीत रीत अनुराग संग,गायें सब मिल फाग |
दूर दूर तक गूँजता , अनुपम अनहद राग ||
बासन्ती तन – मन रंगे , झरे प्रेम मकरंद |
कुहके कोयल आँगना, घर घर हो आनंद ||
नफरत भ्रष्टाचार का ,हो समूल जब अंत |
जन जन में बस प्रेम हो , झूमें तभी बसन्त ||
सरसों कांस पलास की छायी अजब बहार |
साजन संग सजनी ,खड़ी गाये राग मल्हार ||
मधुरिम भावों से भरी है बसन्त ऋतु खास |
निधि वन मोहन मोहनी संग रचावें रास ||
©मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश