सयाली छंद
सयाली छंद
घबराई
डरी धरा
फसलों की जगह
मकान उगा
आधुनिकरण
जब
सिमटे घन
रूठ धरा से
अन्नदाता देखे
भुखमरी
छायी बदरी,
व्याकुल फिर मन,
गीला तकिया
चारदीवारी
हुई असुरक्षित
मर्यादा अमर्यादा में
हुए कसैले
रिश्ते
अंजु गुप्ता