धूम मचाती होली आई
हुरियारों की टोली आई अपनी बस्ती में,
धूम मचाती होली आई अपनी बस्ती में।
लगा गुलाल सभी के कौन इन्हें पहचाने,
बिदिंया के संग रोली आई अपनी बस्ती में।
कोई राधा- कृष्णा कहता, कोई हर-हर बम,
हरी भाँग की गोली आई अपनी बस्ती में।
सब कड़वाहट धो देना रंग के मौसम में,
मस्ती की हर बोली आई अपनी बस्ती में।
जिसके संग नाचे – गाये खेले बचपन में,
आज वही हमजोली आई अपनी बस्ती में।
आओ! आओ! कहाँ छुपे हो मेरे मन मोहन,
अब तक क्यों न डोली आई अपनी बस्ती में।
— डॉ. प्रवीणा दीक्षित
बिदिंया के संग रोली आई अपनी बस्ती में।
कोई राधा- कृष्णा कहता, कोई हर-हर बम,
हरी भाँग की गोली आई अपनी बस्ती में।
सब कड़वाहट धो देना रंग के मौसम में,
मस्ती की हर बोली आई अपनी बस्ती में।
जिसके संग नाचे – गाये खेले बचपन में,
आज वही हमजोली आई अपनी बस्ती में।
आओ! आओ! कहाँ छुपे हो मेरे मन मोहन,
अब तक क्यों न डोली आई अपनी बस्ती में।
— डॉ. प्रवीणा दीक्षित