Author: डॉ. प्रवीणा दीक्षित

कविता

प्रेम जग जाता है

कोयल की कुहू-कुहू, मयूरों का नर्तनगायों का हुम्भारन बैलों की घण्टियों की घन-घन जब पुलक से प्रफुल्लित सी दिखती है अवनिसरसराता पवन जब देह को कँपाता

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