कविता

स्वामी विवेकानंद

राष्ट्रवाद प्रखर भाव से,
पूरित जिनका तन मन था।
ब्रह्मचर्य का तेज तपस्वी,
धधक रहा नव यौवन था।
जगा रहे थे जो भारत का,
अलसाया यौवन।
महा मनस्वी,प्रखर तपस्वी,
स्वामी जी को सतत् नमन।
झोपड़ियों के लिए भरा था,
जिनमें करुणा का सागर।
इच्छा थी सम्पूर्ण विश्व में,
गूँजे मानवता का स्वर।
तेज पुञ्ज गौरव पूरित हो,
भारत का कण कण।
महा मनस्वी,प्रखर तपस्वी,
स्वामी जी को सतत् नमन।
बाल वृद्ध या युवा जनों को,
उत्साहित करते थे।
धर्म ध्वजा ले सकल विश्व में,
अलख जगाते फिरते थे।
जिनकी वाणी कल्याणी से,
अमृत झरता था क्षण-क्षण।
महा मनस्वी,महा तपस्वी
स्वामी जी को सतत नमन।

— डॉ. प्रवीणा दीक्षित

डॉ. प्रवीणा दीक्षित

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, जनपद-कासगंज, उत्तर-प्रदेश