कविता
आज मिलने चले झोपड़ी से महल।
आज खिलने चले कीचड़ों में कमल।।
आई समभाव की इक सुहानी हवा।
थोड़ी माँ की दुआ,थोड़ी दर्दे – दवा।।
आज सूरज भी निकलेगा समभाव से।
माथ फिर से उठेगा त्वरित ताव से।।
स्वेद-सरवर से सरिता बहेगी धवल।
भूख की ज्यामिती होगी सीधी-सरल।।
अब पिघलने लगीं पाँव की बेड़ियाँ।
अब चहकने लगीं औरतें – बेटियाँ।।
सौम्य के सँग मिलावट हुई साम्य की।
छाईं खुशियाँ अवध शान्ति धन-धान्य की।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध