माँ बापर बेकार संतान !
आजकल तो
सभी कष्ट में है,
कोई कम,
कोई ज्यादा !
जब कोई कष्ट में होते हैं,
परिवार और मित्र नहीं,
सबसे पहले
अपना विवेक ही
काम आते…
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कुछ डिग्री….
एमबीबीएस
यानी माँ बापर बेकार संतान,
एमबीए
यानी मेहमान बिन-बुलाए आए,
पीएचडी
यानी फटा हुआ ढोल,
एमफिल यानी महफ़िल !
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लोकसभा चुनाव में
किसी पार्टी ने
साहित्यकारों को
टिकट नहीं दिए,
एक ‘निशंक’ को छोड़कर!
और कहेंगे-
साहित्य ‘समाज’ का दर्पण है!
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क्रिमिनल
यानी गुंडे,
मवाली,
झपटमारों,
बदमाश,
उचक्के इत्यादि के
पास की भीड़
उनकी लोकप्रियता का
सूचक नहीं,
अपितु उनसे
भय रखने के कारण है!
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