संग-साथ की इच्छा सबकी
पुष्प की चाह, सभी को होती, कुछ ही पल को वह खिलता है।
संग-साथ की इच्छा सबकी, किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।
चाहने से यहाँ, कुछ नहीं होता।
काटता है वही, जो व्यक्ति बोता।
कर्तव्य रहित अधिकार जो चाहे,
कदम-कदम वह, निश्चित रोता।
साथ उसी को, मिलता जग में, प्रेम सूत्र रिश्ते सिलता है।
संग-साथ की इच्छा सबकी, किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।
आकांक्षा और अभिलाषाएँ।
तरह-तरह की हैं आशाएँ।
चाहत किसी की पूरी न होतीं,
चुनौती देती, हैं निराशाएँ।
चाहत तजकर, साथ निभाए, साथ उसी का, बस निभता है।
संग-साथ की इच्छा सबकी, किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।
प्रकृति का कण-कण साथ हमारे।
सुना न तुमने, हम थे पुकारे।
कर्तव्य पथ पर, बढ़ते रहेंगे,
मृत्यु भी, पग-पग, हमें दुलारे।
पथ ही साथी, जब हो पथिक का, ऐसे पथिकों से, जग हिलता है।
संग-साथ की इच्छा सबकी, किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।