सरकारी सेवक और अन्य क्षणिकाएँ
किसी तरह की
‘वायरस’ की
आजतक स्थायी
कोई दवा नहीं बनी है
चाहे वो डेंगू वायरस हो,
चिकनगुनिया हो,
एचआईवी हो
या कोरोना वायरस हो !
टीका खाने की चीज नहीं,
लगाने की है !
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मैं इसलिए लिखता हूँ,
ताकि शब्दों की
ताकत को
पहचान सकूँ !
आप तो पति को
ऑफ़िस भेजने
और बच्चों के
टिफ़िन भरने की ही
तैयारी करतीं !
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2014 में चायवाले !
2019 में चौकीदार !
फिर ‘च’
मेरे चा.चौ. जी,
यह कर्म के प्रति
आपके अथाह
समर्पण ही है न !
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गाँवों में लोग
अब भी यही समझते हैं,
भाजपा और काँग्रेस
अमीरों की पार्टी है,
कम्युनिस्ट वहीं
गरीबों की पार्टी है?
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तेरहवां साल भी
बिहार के
नियोजित शिक्षकों की
तेरहवीं जारी!
नियुक्ति के तेरहवें साल भी
सेवाशर्त्त नहीं बना
और वे नहीं हैं
‘सरकारी सेवक’ !
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