हम सब अपने माता-पिता जैसे ही तो हैं
एक दिन, मैं और मेरा आठ वर्षीय बेटा शतरंज खेल रहे थे, तब उसने पूछा कि मुझे ये खेल किसने सिखाया । मैंने कहा “मेरे पिता ने” और मैंने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के शतरंज के चैंपियन को भी हराया था। उस समय अखबार में उनका नाम भी छपा था। पिताजी ने मुझे और मेरे भाई को शतरंज का अंतर्राष्ट्रीय तरीका सिखाया था, हमें अंग्रेज़ी में शतरंज की गोटियों के नाम पता थे। वे हमें कैसपेरोव के बारे में भी बताते थे, जब भी हम उनके साथ शतरंज खेलते।
स्वतंत्रता दिवस वाले दिन , मैंने उसको बताया था कि मेरे पिता स्थल सेना में भी थे, भारत – पाकिस्तान युद्ध के समय उनकी भर्ती हुई थी। फिर एक दिन, एक आत्मरक्षा की वीडिओ देखते हुए मैंने उसको बताया कि मेरे पिता कराटे के ब्लैक बेल्ट भी थे। तभी मैंने उसको ये भी बताया कि वे तैराकी भी बहुत अच्छी करते थे। बचपन मे हमे स्टेडियम भी ले जाते थे तैराकी सिखाने।
पिताजी कहते थे, अंग्रेज़ों से अच्छी अंग्रेज़ी कोई नही लिख सकता। वे हमें हमेशा अंग्रेज़ी लेखकों की रचनाएं, उपन्यास और अखबार का संपादकीय भाग पढ़ने को बोलते। जिसे मैं और मेरा भाई बिना किसी रुचि के कभी कभी पढ़ लेते थे।
कुछ दिन पहले मेरे बेटे ने मुझसे कहा कि उसे चित्रकारी करना अच्छा लगता है। मैंने उसको बताया कि मेरे पिता की चित्रकला और लिखाई बहुत अच्छी थी, उन्होंने विसुअल आर्ट का डिप्लोमा भी किया था। उनकी कविताएं व लेख बहुत सारी पत्रिकाओं में छपती थी, बैंक के न्यूज़लेटर में भी (वे बैंक के कर्मचारी थे)। उनकी कविताओं और चित्र कला के कारण उन्हें बैंक के यूनियन चुनाव में पोस्टर बनाने को और लिखने को दिया गया था। मेरे बेटे को हँसी आ गई, उसने मुझसे कहा “आपके पिता सुपर मैन थे क्या?”
हाँ, शायद उन्हें सुपर मैन बोलना गलत नहीं होगा।
मैंने अपने बेटे की उसके मामा से बात करवाई और बोला “पूछ लो कि क्या उसके नाना (यानी मेरे पिता ) ये सब कर लेते थे या नहीं ?”
मेरे पिता बहुत प्रतिभाशाली थे और इस बात का एहसास मुझे अब होता है। हमारे लिए वो हमारे शब्दकोष और विकिपीडिया थे, फुटबॉल और डिगो माराडोना से लेकर ईश्वर चंद्र विद्यासागर तक और रामायण व महाभारत के विषय में भी हमें सबसे पहले उन्होंने ही बताया।
उनकी कविताएं, उनके लेख और उनकी कलाकृति हमारे घर के हर कोने में मिल जाती थी। वे थिएटर में अभिनय भी करते थे, गज़ब के मंच संचालक भी थे।
पिताजी दूसरों से बहुत अलग थे, बहुत तर्क करते थे और बहुत ज़िद्दी भी थे। हमारे बीच बहुत वैचारिक मतभेद थे और जब मैं उनसे तर्क करती तो मुझे कहते दीदी (इसी नाम से मुझे बुलाते थे) तुम बहुत अहंकारी हो गयी हो।
आज जब मैं उनके बारे में सोचती हूँ तो लगता है कि मैं उनकी तरह बहुर्मुखी प्रतिभा की धनी तो नहीं पर कई मायनों में, मैं और मेरा भाई उन्हीं की तरह हैं।
हम सब अपने माता पिता जैसे ही तो होते हैं और ये बात हमें तब ज्ञात होती है, जब हमारी आधी उम्र बीत चुकी है।आज वो दोनों हमारे बीच नहीं हैं, परन्तु, आज तक ऐसा एक दिन भी नहीं बीता, जब मैं अपने माता पिता को याद न किया हो।