नारी अब बेड़ियों से मुक्त हो गई है
गांव की बेटियों का रहा जलवा
शहर पीछे रह गए
कल तक जिन्हें पूछता नहीं था कोई
आज वो वीआईपी हो गए
जहां देखो अपनी बेटियां
आज कमाल कर रही
किसी भी फील्ड में आने से
बिल्कुल नहीं डर रही
चूल्हे चौके से निकलकर
जा पहुंची आसमान
अब किसी की मोहताज नहीं
खुद की हो गई एक पहचान
घूंघट की ओट से चेहरा जो बाहर आया
अपनी प्रतिभा का जादू हर तरफ फैलाया
कैद थी सदियों से जो घर के अंदर
उसने खुली हवा में पंख फड़फड़ाया
ट्रक चलाना होता था कठिन काम
अब वहां भी संभाल ली उन्होंने कमान
जिसे पुरुष समझते थे हक है अपना
वो मिथ्य तोड़ कर पहुंची आसमान
हर जगह आज बेटियां हैं छाई
जिसके पीछे अच्छे संस्कार और पढ़ाई का बल है
अच्छी शिक्षा ही उन्नति का द्वार है
उसी का तो मिल रहा आज फल है
पुरुष प्रधान समाज में अभी भी
नारी को कम आंका जाता है
हमसे आगे न निकल जाए कहीं
यही डर हमेशा उनको सताता है
नारी अब बेड़ियों से मुक्त हो गई है
कोई नहीं अब उसको रोक पायेगा
यह तो बहुत बड़ा दरिया है समझ लो
जो भी रास्ते में आएगा,उसको बहा ले जाएगा
— रवींद्र कुमार शर्मा