कविता

प्लास्टिक त्यागें

अपनी ही करनी का फल तू,भुगत रहा इनसान
तूने आज स्वयं का देखो कर डाला अवसान
तूने खोजित किया प्लास्टिक,हर कामों में साधा
इसीलिए यह फैल रही है शुद्ध हवा में बाधा
आज करोना लेकर आया,मौत की काली छाया
लिपटी हुई आज प्लास्टिक में,मानव की तो काया।

मानव तू सचमुच अविवेकी,पैर कुल्हाड़ी मारी
तेरी करनी से प्रकृति भी,आज दिख रही हारी
जगह-जगह पन्नी-थैली के,ढेर लगे हैं देखो
अपनों कामों को मानव तू,आज स्वयं ही लेखो
आज इसी प्लास्टिक के कारण,दिन में हुआ उजाला
मानव तूने निज हाथों ख़ुद,कर डाला मुँह काला।

कोरोना उत्पात मचाये,हर इक आतंकित है
देख प्लास्टिक प्रेम हमारा,धरती भी क्रोधित है
क़ुदरत ने यूँ खेल दिखाया,मौत न छोड़े सब को
देह ढँके फिरते हैं सारे,प्लास्टिक से ही अब तो
वक़्त कह रहा,थैले कपडे़ के हम सब अपनाएँ
काँच शीशियाँ,काग़ज़ पैकिंग,के पथ हम फिर जाएँ ।

आओ हम निज करनी को अब,नवल चेतना दे दें
सोचें-समझें,और विचारें,नवल जागरण दे दें
वरना मिट जाएँगे हम सब,काल करे फरियादें
करें और ना आज नष्ट हम,जीवन की बुनियादें
किया जो हमने भुगत रहे हम,अब तो हम सब जागें
बहुत हो चुका,प्लास्टिक से अब, दूर सभी हम भागें।

— प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]