सोशल मीडिया, नेटवर्किंग साइट : यौन संबंध और मैली गंगा !
आप ये हेडिंग पढ़कर चौंकिए मत ! कहीं ये आपके मन की ही बात तो नहीं उजागर कर रही। घबराइए मत। आजकल सोशल मीडिया का नेटवर्क जितनी तेज़ी से अपनी बात कुछ ही सेकेंडों में विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंचा रहा है, यह जितना हमारे समय को बचाकर तीव्र प्रणाली से काम करने में सक्षम है उतनी ही तेज़ी से यह हमारे जीवन को अपने वश में भी कर रहा है।
नज़रिया हर किसी का अलग है, अलग-अलग सोच है। हाड़-मांस में सब एक जैसी ही रचना हैं उस परमपिता की किन्तु फर्क है तो बस दृष्टिकोण का। कुछ नया नहीं है विषय इस पर हर ओर चर्चाएँ हो रही हैं, शोध हो रहे हैं।
मनुष्य की सोच को यंत्राधीन होने से कैसे रोका जाए यह विषय बहुत गंभीर हो चुका है। सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं में से अब नकारात्मक अपने साथी पर हावी हो रहा है। यही तो रोकना है पर कैसे ?
पेंडमिक के इस दौर ने सभी को इनसे इतना जोड़ दिया है कि काम के साथ-साथ न जाने कितनी पॉर्न साइट्स पर नाबालिग बच्चे,बड़े,बूढ़े,शादीशुदा सभी मनोरंजन कर रहे हैं।
एक ज़माना था बच्चों की सोच-विचार में घर-परिवार के संस्कार चमकते थे अब तो घर में बजती पूजा की घंटी नहीं सुनाई देती उन्हे पर मोबाइल में एसएमएस की आवाज़ से तुरंत उनके कान खड़े हो जाते हैं ।
सबसे ज़्यादा युवा पीढ़ी आज इसकी चपेट में है, साम-दाम, दंड-भेद हर उपचार करके वह बस इनके बिना जीना नहीं चाहती। क्या करें भैया ! सभी काम #ऑनलाइन जिंदगी हो गए हैं। युवाओं को ही निर्णय लेना है कि इसका प्रयोग कितना सही और गलत है।
आज हमारी यही पीढ़ी या तो सबसे ज़्यादा इसका फ़ायदा उठा रही है या बर्बाद हो रही है। ये एक कड़वी हकीकत है फ़िज़िकल अट्रेक्शन, जिसमें युवाओं की सबसे ज़्यादा रुचि है।
वो है – विपरीत लिंग की प्रोफ़ाइल से आकर्षित होना, शारीरिक खिंचाव महसूस करना, उनके बारे में अश्लील सोच रखकर पॉर्न वीडियोज़ देखना और शीघ्र अतिशीघ्र सेक्स या कह लीजिये शारीरिक संबंध बनाने के लिए आतुर रहना।
एक बेचैनी सी बनी रहना। बार-बार अनजान और खूबसूरत प्रोफ़ाइल को भेजी गई रेकवेस्ट की स्वीकृति के लिए बेसब्री रहना। न जाने कितने ही लोग ऐसे हैं जो म्यूचुअल फ्रेंड होने का फ़ायदा उठा रहे हैं। बस विश्वास सधा रहता है मन में कि किसी जानकार से बात की, कुछ हुआ तो दिक्कत नहीं आएगी।
मैं ये नहीं कहती कि सिर्फ पुरुष ऐसा करते हैं, आजकल कई स्त्रियाँ भी इन सबमें शामिल होती हैं।
बहुत अच्छा और सरल उदाहरण देती हूँ, छोटे-छोटे शहरों और गांवों से माता-पिता बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए बाहर महानगरों में भेजते हैं, पर क्या वे सभी यहाँ माता-पिता की दी हुई आज़ादी का सही इस्तेमाल करते हैं ? क्या वे उनकी इज्ज़त, मान-सम्मान को बरकरार रखते हैं ? पढ़ाई के लिए भेजे गए पैसों का सही उपयोग करते हैं ? मैं ये नहीं कहती कि सभी युवा ऐसे हैं पर आंकड़े देखे जाएँ तो ८० % बच्चे अपने संस्कारों को शहर की ओर बढ़ती हुई बस और ट्रेन में बैठते ही भूल जाते हैं।
शुरू कर देते हैं बस अपने वक़्त और मेहनत के पैसे की बरबादी- चरस, सिगरेट के धुएँ, होटल के महंगे खाने, क्लब, महंगे कपड़ों, और नाइट पार्टियों में। लिखते हुए उँगलियाँ थरथरा जाती हैं कि अपनी और अपने माता-पिता की इज्ज़त को होटल के बंद कमरे में नाजायज शारीरिक सम्बन्धों के नशे में भुला देते हैं !
सारी मर्यादाओं को तोड़ देते हैं यौन संबंध की खातिर ?
बड़ी मासूमियत से अपने माता-पिता से पैसे मँगवाते हैं कभी बीमारी तो कभी किसी और बहाने से। हमारी धरा पर बहती गंगा तो मनुष्य के पापों और प्रदूषण के कारण मैली है पर उसकी ममता का आँचल फिर भी पवित्र है !
पर उस स्त्रीस्वरूप गंगा का क्या जो आजकल शादी से पहले प्यार किसी से, सेक्स किसी से और शादी किसी और से और यदि शादी के बाद भी शारीरिक सुख न मिले तो ऑनलाइन सेक्स तो है ही, आज-कल सभी महत्त्वाकांक्षी हो गए हैं। पति-पत्नी को भी प्राइवेसी चाहिए।
चुभ रहा होगा मेरा सत्य कहना, पर जो है सो है। देख रही हूँ, पढ़ रही हूँ और सुन भी रही हूँ रोज़, सोशल मीडिया के खट्टे-मीठे किस्से।
अब आप ही बताओ कि क्या बच्चे ऑनलाइन रहकर आजकल अपने भाई-बहनों से, दादा-दादी से, या परिवार के अन्य सदस्यों से घंटों बात कर सकते हैं ? मन्ने तो न लागे है ! या तो कोई बिज़नस करते हैं, या कई तरह की ऑनलाइन डीलरशिप में पैसे कमावे हैं, स्वीगी,ज़ोमेटो करवे हैं, कुछ पढ़ने वाले पढ़ भी लेवे हैं थोड़ा-बोत, पर यही कोई ३० %। बाकी के तो रोज़ नई गर्लफ्रेंड बनावे हैं, ४ दिन बाइक-गाडी में घुमावे हैं, बंद कमरे में ऐश करवे हैं फिर हो लिए नौ-दो-ग्यारह जी। तुम आपने रास्ते हम आपने जी। कई बार यही सोशल नेटवर्किंग आपके लिए हादसा भी बन सकती है। बात ये याद रखो कि पुरुष प्रधान समाज में अपनी ईगो को अब भूल जाओ अगर एक स्त्री के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हो तो सहने की भी हिम्मत रखनी होगी।
चाहे लड़की होवे या लड़का सब आजकल बावले सरीर के भूखे और चावें हैं ब्याह के बाद शुचित वर और कन्या ! कहाँ से लाओगे रे !
सोशल नेटवर्किंग में पॉर्न वीडियो देखे हौ, यौन शोषण करे हौ तो मैली गंगा में ही डुबकी लगावे की हिम्मत भी राख्यों न …….
निवेदन यही है कि जीवन के एक कड़वे सत्य को समझिए,जानिए कि क्या खो रहे हो ?? समय भी और संस्कार भी। जिससे आप सभी भलीभाँति परिचित हैं। संभाल लीजिए इस जंजाल से खुद को और खुलकर बात कीजिए अपने बच्चों से,अपने अहम रिश्तों से घर में ऐसे विषय पर। शिक्षित कीजिए उनको सही-गलत को एक दोस्त की तरह समझाइए। इन्हीं कारणों से इसे शिक्षा का विषय भी बनाया गया अब। कल को जब आपके बच्चे शादी के लिए तैयार हो तो उनके मन में ये प्रश्न और संदेह न आएँ कि आज कल सब _ यौन संबंध हैं और गंगा मैली है ।
— भावना अरोरा ‘मिलन’