संभल जा, है राह अजनबी।
है बहुत कठिन चाह अजनबी।
पर्वतों की दुर्गम घाटियाँ,
कैसे पाये थाह अजनबी।
अज्ञेय, असाध्य- है साधना,
न निकले तेरी आह अजनबी।
धीर, वीर साधता सफलता,
कंटकों का कर दाह अजनबी।
देख उसके हौंसले बुलन्द,
दुनिया करती डाह अजनबी।
शत्रु भी सभी घुटने टेके,
तेरी विजय की वाह अजनबी।
— डॉ. अनिता जैन ‘विपुला’