जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी
वतन की ऊर्जा हिये में हर्षाये
हरेक प्रकोष्ठ में धरा के समाये।
रंग-रूप रीति-नीति धर्म-कर्म संग
जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।
सांसों में थामे कस्बाई हवा को
उड़ चले सातों समंदर के पार।
कुरीतियों पे करते जमकर प्रहार
विषमताओं के तोड़ते हैं तार।
वृक्षों से झरे पर मुरझाए नहीं
जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।
फैलाते चहुँ ओर सुरभित गंध
हृदय में बसाये विदेशिये द्वंद्व।
बिसारते न खान-पान बोली-भाषा
अपनो से जुड़ने की हरपल आशा।
नहीं कसमसाते पीड़ा से इसकी
जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।
उड़े पवन संग गिरे दूर जाकर
खुशबू को रखा हमेशा संभाले।
मिट्टी को अपनी लपेटे तन में
रंगे नहीं हर किसी के रंग में।
सोना उगलती ये धरती सारी
जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।
— डॉ. निशा नंदिनी भारतीय