गीत/नवगीत

मौत का जश्न

अब तो जागो! आँखें खोलो, मौतें जश्न मनाती हैं
चिता सजाती है दीवाली, कब्रें ईद मनाती हैं।

मरघट और कब्रस्तानों में, लगा शवों का मेला है
मेरे बाद है तेरी बारी, तू ना यहाँ अकेला है
लचक-लचक कर आग की लपटें, नंगा नाच दिखाती हैं
अब तो जागो! आँखें खोलो, मौतें जश्न मनाती हैं।1।

सहमे-सहमे माटी के कण, ज़र्रा-ज़र्रा रोता है
लाशों को अफसोस कि, अपना खून न अपना होता है
मिट्टी, मिट्टी में मिलने को, सोच-सोच घबराती है
अब तो जागो! आँखें खोलो, मौतें जश्न मनाती हैं।2।

उल्लू बोल रहे बरगद पर, कुत्ते रात जगाते हैं
साँझ-सवेरे भौरे भी अब, मृत्यु-गान सुनाते हैं
शबनम के बदले में रातें, अब आँसू बरसाती हैं
अब तो जागो! आँखें खोलो, मौतें जश्न मनाती हैं।3।

मौत जन्म के साथ है चलती, बड़ा अनोखा नाता है
आँख मिचौली का खेला ये, समझ ना कोई पाता है
मगर समय के पहले साँसें, आज क़फ़न पहनाती हैं
अब तो जागो! आँखें खोलो, मौतें जश्न मनाती हैं।4।

— शरद सुनेरी